गीतिका/ग़ज़ल

ज़िन्दगी गुलज़ार नहीं है…

 

तपते रेत का दरिया है आबशार नहीं है।
ज़िन्दगी किसी की भी गुलज़ार नहीं है।

कागज़ कलम की धड़कने धीमी सी हो रहीं,
लिखता हूँ अब भी लेकिन ज़िक्र-ए-यार नहीं है।

क्या लिया दिया था कितना मैं क्या जानूँ,
शायद ये इश्क ठहरा कारोबार नहीं है।

जब से लड़कपन गुज़रा मज़दूर हो गया,
अब ज़िन्दगी में कोई भी इतवार नहीं है।

खुद ही पौंछ आँसू ज़ख्मों की दवा कर,
कोई तेरे सिवा तेरा गमगुसार नहीं है।

न तीर न तरकश फिर भी बढ़ा तू चल,
‘लहर’ हौंसले से बढ़ कर हथियार नहीं है।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा