गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मैं अपनो को दिए कर्ज नहीं गिनाती
निभाती हूं रिश्ता मैं फर्ज़ नहीं गिनाती
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बहाया है मैंने खून पसीना बहुत सा
ज़िन्दगी पर गुज़रा मैं हर्ज़ नहीं गिनाती
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गुज़ारी हैं जो रातें परवाह में मैंने
उन टूटी नींदों के मैं गरज नहीं गिनाती
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कांधे पर सर रखकर रोए थे कभी जो
उन उखड़ी सांसों की मैं तर्ज़ नहीं गिनाती
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लुटती दुनिया का मुझको दिया था वास्ता
अपनों का साथ देने के मैं अर्ज़ नहीं गिनाती
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रिश्तों का खून करके हंसते हैं बहुत लोग
कैसे है क्या क्या मुझपे मैं दर्ज़ नहीं गिनाती
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बना रखी है मेरी क्यों तस्वीर उसने उल्टी
वहम से पैदा हुए उसे मैं मर्ज नहीं गिनाती

शिप्रा खरे (गोला-खीरी)

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - shipradkhare@gmail.com