लघुकथा

नीयत का शहनशाह

भले ही नियति ने उसे शहनशाह नहीं बनाया हो, पर नीयत का शहनशाह तो वह था ही. उसने कभी कुर्सी की चाहत नहीं की थी, पर कुर्सी उसे मिल गई थी, भले ही वह व्हील चेयर ही हो. उसने कभी प्रशंसा-अनुशंसा की चाहत नहीं की, पर लोगों ने उसकी प्रशंसा-अनुशंसा में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. उससे मिलने के बाद मुझे यह सब पता चला.

”मैंने देखा है कि अन्य भिखारी तो कटोरे में का उपयोग भीख मांगने के लिए करते हैं, पर तुम्हारे कटोरे में औरों के लिए खुशियां जुटती हैं. यह सब कैसे हो गया?” मैंने राजू से पूछा.

”मैं क्या जानूं साहब, मैं पढ़ा-लिखा तो हूं नहीं, बचपन से ही दिव्यांग भी हूं. पर मैंने सुना है कि सब मेरी सोच पर फिदा हैं.” उसका जवाब था.

”वो कैसे?” मैंने जानना चाहा था.

”मैंने अपने लिए तो बस इतना ही चाहा है, कि भीख मांगकर ही सही, मेरा पेट पल जाए, शेष से दूसरों की मदद को मैंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया.”

”यानी भीख मांगकर भी दूसरों का सहारा बनते हो?” मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था.

”मैंने मुसीबतों को नजदीक से देखा है. बचपन में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद मेरे तीन भाई और तीन बहनों ने मुझे 30 साल पहले बेसहारा छोड़ दिया था. लोगों ने मेरे कटोरे में खुशियां डालीं और मैं औरों के लिए खुशियां जुटाने में जुट गया.”

”अपने बारे में कुछ और बताओ भाई.” मेरा आश्चर्य बढ़ता ही जाता था.

”क्या बताऊं साहब, एक दिन मैंने एक साहब से अपने पास बैठी एक माई के तन ढकने के लिए एक वस्त्र मांगा, उसने थोड़ी देर बाद आने को कहा और पांच साड़ियां दे गए. माई ने उसी समय दो साड़ियां अपने लिए रखीं, बाकी औरों को बांट दीं.”

”ऐसा भी होता है तुम्हारी दुनिया में? मुझे पता न था.” मेरे मुख से सहसा निकल गया.”

”जी साहब, तब से वे साहब और उनके जैसे और लोग भी मेरा सहारा बनते हैं और मुझे दूसरों का सहारा बनने का मौका मिलता है. अरे हां याद आया, एक साहब ने अपनी कलम से मुझ पर एक कविता लिखी थी.” व्हील चेयर की पॉकेट से उसने एक पर्चा निकाला, जिस पर लिखा था-

”मैंने जमाने से सीखना चाहा,
कुछ न सीख पाया,
ऐ व्हीलचेयर पर भीख मांगने वाले,
तूने मुझे जीने का गुर सिखा दिया,
गुज़र जाएगा ये दौर भी,
ज़रा सब्र तो रख,
जब खुशी ही न ठहरी,
तो ग़म की क्या औकात है!” मैंने पढ़ा.

नीयत के उस शहनशाह से सबको खुशियां बांटने की सीख और संकल्प के साथ उसको नमन करता हुआ मैं आगे बढ़ गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “नीयत का शहनशाह

  • लीला तिवानी

    कोई अपनी खुशी से नहीं मांगता भीख…
    अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सड़कों पर भीख मांगने वाले लोग खुशी से यह काम नहीं करते हैं, बल्कि यह उनके लिए अपनी जरूरतें पूरी करने का अंतिम उपाय है। जीवन के अधिकार के तहत सभी नागरिकों के जीवन की न्यूनतम जरूरतें पूरी करना सरकार की जिम्मेदारी है। जिसमें वह नाकाम है तो इसकी सजा किसी मजबूर इंसान को नहीं दी जा सकती है।

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