लघुकथा

सौम्यता

आज सुबह-सुबह शीतल-मंद-सुगंधित बयार की तरह सौम्या आ गई थी. सौम्या, उसकी प्यारी सखी सौम्या, जिसको उसने कभी शिद्दत से चाहा था, फिर अमीरी के बोझ तले वह प्यार दब गया था. बहुत थकी हुई होने के कारण सौम्या चाय पीकर बाद में बात करने को कहकर सो गई थी. चैन से सो रही थी सौम्या, पर नीतू को नींद कहां?
”अचानक ये रिश्ते सिसकते-से क्यों लग रहे हैं?” नीतू ने शायद खुद से ही पूछा था. कौन सुनता और कौन जवाब देता? उसके सिवाय वहां था भी कौन? था सिर्फ मौन. प्रश्न भी उस मौन को मुखर नहीं कर पाया था, नीतू की आवाज घुटकर जो रह गई थी.
”रिश्ते सिसकते कैसे नहीं? दो एक दिन एक पौधे को पानी न मिले तो वह मुरझा जाता है, फिर सालों से जिन रिश्तों को पानी नहीं मिला हो, उनका और क्या हाल हो सकता है!” मौन की यह दूसरी उड़ान थी.
एक-एक कर नीतू के सामने सबकी तस्वीरें आती जा रही थीं. पहले सबसे प्यार-ही-प्यार, फिर शादी के बाद अकूत धन की चकाचौंध में एक-एक कर प्यार के सब रिश्तों का धुंधला पड़ जाना. पहले पति और बच्चे तो अपने थे, फिर पति ने किसी और की चाहत पाल ली, सो वह रिश्ता भी फिसला. बड़ी हसरतों से बड़े बेटे को विदेश पढ़ने भेजा था, वह वहीं का होकर रह गया, न आया, न बुलाया. छोटे बेटे ने धन की पोटली को शराब की लत में खाली करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, अब तो वह अपने आपे में ही नहीं था. आभासी दुनिया से भी उसका मोहभंग हो गया था.

रोज नए-नए रेस्टोरेंट्स में जाने की फोटोज़ डालने वाली नीतू अब फेसबुक पर कैसे फोटोज़ पोस्ट करती? उजड़ा घोंसला, घुटता मन, बेतरतीब विचारों से आपूरित मस्तिष्क! यही तो अब उसकी जमापूंजी रह गई थी न!
”नीतू देख तो, मैं तेरे लिए कितनी सुंदर साड़ी लाई हूं?” सौम्या ने आकर उसकी तंद्रा भंग करते हुए अपनी छोटी-सी अटैची उसके सामने खोल ली.
”वाउ! कितनी तरतीब से इसने अपने कपड़े जमा रखे हैं? एक मैं हूं, कि एक कपड़ा निकालती हूं, तो दस बाहर झांकने लगते हैं.” नीतू देखती ही रह गई.
आसमानी रंग की सुंदर-सी सूती साड़ी सौम्या ने उसके कंधे पर रखकर कहा- ”नीतू, शीशे में देख तो, यह तुझ पर कितनी फब रही है!”
”अच्छी बच्ची की तरह नीतू ने ऐसा ही किया.” उसने शीशे में खुद को तो नहीं देखा, अलबत्ता यह जरूर देख लिया, कि सौम्या ने रिश्तों को भी ऐसे ही सौम्यता से सहेजकर रखा होगा. सौम्या जो है!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “सौम्यता

  • सरला तिवारी

    बेहतरीन कहानी मैम🙏🏼
    हर माँ बाप का सपना होता है की हमारे बच्चे विदेश में पढ़लिखकर कामयाब इन्सान बने,पर बच्चे कामयाब तो हो जाते हैं लेकिन अच्छे इंसान नही बन पाते विदेशों में जाकर अपने रिश्ते ही भूल जाएं तभी माँ बाप को अपार दुख होता है।

  • लीला तिवानी

    सहेज तो कोई सौम्या से सीखे, चाहे वह रिश्तों की हो या कपड़ों की.

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