लघुकथा

कारगर नुस्खा

किसी भी अच्छे विचार या सुझाव का अनुसरण, अनुशीलन और अनुपालन करने से अनु को कोई गुरेज नहीं था. अत्यंत विश्वासपूर्वक वह ऐसा करती भी थी. ऐसा करने में उसकी सकारात्मक विचारों वाली सखियों की भूमिका भी अविस्मरणीय थी.
उसकी एक सखी ने उससे पूछा था- ”अनु, तुम सत्संगियों के साथ लखनऊ क्यों नहीं जातीं, सत्संग में बार-बार तुमसे पूछा भी जाता है?”
”मजबूरी है मेरी. उम्र के इस मोड़ पर छोटी-मोटी अनेक शारीरिक समस्याएं लगी ही रहती हैं. यूरिन इंफेक्शन के चलते वहां सबके साथ गुरुओं के पास 3-4 दिन रहना मेरे लिए मुश्किल है.” अनुराधा ने जवाब दिया था.
”चलो तुम लखनऊ भले ही न जाओ, पर यूरिन इंफेक्शन का एक आसान नुस्खा तो अपना ही सकती हो!” सखी ने कहा था.
”बताओ, जल्दी बताओ, तुम्हारे नुस्खे तो होते भी बहुत सरल और लाजवाब हैं.” अनु ने उत्सुकता से कहा था.
”सत्संग में रोज बताते हैं न, कि अपनी सांस पर ध्यान दो. बस वही करो. सांस रोककर ‘सो’ बोलो और सांस छोड़ते हुए ‘Sहं’. सोSहं का अर्थ तो मालूम ही होगा.”
”हां जी, सत्संग में बताते हैं- ”वह यानी परमात्मा मैं ही हूं. मुझ में और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है. मुझमें वह और उसमें मैं. आप पूर्ण हो क्योंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण में रहते हो ओर पूर्ण में जाना है. पूर्ण में से पूर्ण को निकालने से पूर्ण अधूरा नहीं हो जाता है. पूर्ण तो पूर्ण ही रहता है.”
”अ‍ब तुम कहोगी, समय ही कहां मिलता है! तो सैर करते-करते ही बोलो.”
”सैर करते-करते!” बीच में ही अनु ने टोका था. ”ये कैसे हो सकता है?”
”पहले करके तो देखो, मैं तो रोज यही करती हूं.” सखी ने कहा था.
दो दिन बाद उसी सखी से मिलने पर अनु ने कहा था- ”मेरे चेहरे की चमक देख रही हो! यह तुम्हारे उसी नुस्खे की बदौलत है.”
ऐसी ही सखियों की संगति ने अनु को सकारात्मकता से लबरेज कर दिया था.
फिर उसने कमाल के किस्से-14 में कमाल की योग-जानकारियां पढ़ते हुए एक नुस्खा पढ़ा-
”72. *कब्ज* होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एड़ियों के बल चलना चाहिए.”
अनु ने तुरंत वह सरल नुस्खा आजमाया. पहले चप्पल उतारकर घर में ही एड़ियों के बल चलने का अभ्यास किया, फिर-चप्पल जूते पहनकर. अभ्यास पक्का हो जाने पर वह सैर भी ऐसे ही करने लगी. फिर क्या था- उसकी कब्ज की समस्या भी उड़न छू हो गई, और तो और घुटने का दर्द भी डरकर भाग गया.
अब अनु कमाल के किस्से पढ़कर बहुत-से नुस्खे आजमा चुकी है और सबको परामर्श भी देती है.

 

पुनश्च-
यह लघुकथा फेसबुक पर हमारी एक सखी द्वारा भेजे गए अनुभव के आधार पर आधारित है. आप भी इन नुस्खों या अन्य नुस्खों से होने वाले लाभ के बारे में हमें कामेंट्स में हमें बता सकते हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “कारगर नुस्खा

  • लीला तिवानी

    सोsहं का तात्पर्य होता है

    ” बाहर ब्रह्मांड में जो कुछ भी है वो ” मैं ” ही हूँ। मैं वही हूँ. न मैं तीसरे व्यक्ति मैं हूँ, न दूसरे व्यक्ति मैं हूँ. मैं स्वयं स्वयंभू हूँ.
    सोऽऽऽ हम. ”

    इस मंत्र का जाप आप चौबीसों घंटे अपनी हर सांस के साथ कर सकते हैं.
    इस मंत्र से जहां आपको मानसिक शांति मिलेगी वहीं धीरे धीरे आध्यात्मिक शक्तियों का भी विकास होगा.
    श्वास लेते समय अंदर आती सांस को महसूस करते हुए “सो” का उच्चारण बिना आवाज के करें.
    श्वास छोडते समय बाहर जाती सांस को महसूस करते हुए “हम” का उच्चारण बिना आवाज के करें.

Comments are closed.