गीत/नवगीत

एक पाती लिखनी तुमको

 

एक पाती लिखनी तुमको क्या आज लिखूँ
विरह कहूँ प्रिय या मिलने के अंदाज लिखूँ ।।

आन मिले जब निपट अँधेरी रात प्रिये
सिहर उठा जब पोर पोर ये गात प्रिये
पकड़ हथेली मचल पड़े जब  सन्नाटे थे
तकि दर्पण मुख बिम्ब पसरती लाज लिखूँ ।।

आलिंगित से दृष्टिपात मन भीतर मंथन
भ्रमित चित्त पथ भटका स्वासों के कम्पन
शब्द तालु अटके अधरों पर रतिमय गुंजन
वो स्वेद छलकते तनु के सुर्ख लिहाज लिखूं ।।

रोम रोम पे फगुवाई जब अमराई की बौर
पात पात प्रिय मंडराया मन जैसे कोई चोर
गंध मदन छुप के जा बैठी अन्तस् के मधु ठौर
आखर आखर जोड़ प्रणय के वो राज लिखूँ ।।

प्रियंवदा अवस्थी

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।