कहानी

वह कौन- भाग 2

सुबह सुबह सुरेश और निर्मल थाने से छूट गए थे। उनको देखकर लग रहा था दरोगा और हवलदार ने उन दोनों की बहुत अच्छी तरह से मेहमान नवाजी की है। दोनों के गाल सूजे हुए, बाल बिखरे बिखरे, उदास चेहरा सब बयान कर रहा था कि कितनी मार पड़ी होगी दोनों को। छूटते ही दोनों सीधा नवीन के घर पहुंचे।

दोनों का मन नवीन के लिए बहुत तड़प रहा था। आंखें भर आ रही थी, यह क्या हो गया मेरे दोस्त के साथ? कितना भोला भाला अच्छा जिगरी दोस्त था हमारा। वे दोनों बात कर रहे थे..” किसने ऐसी दुर्दशा कि हमारे दोस्त की? एक बार हमारे सामने आ जाए तो हम उन्हें छोड़ेंगे नहीं? उसने हमारे दोस्त को तो मारा ही है साथ ही उसके कारण हमें भी इतना कष्ट झेलना पड़ा। निर्दोष होते हुए भी, और.. दरोगा तो कुछ मानने को भी तैयार नहीं था। हमें इतना मारा कि पूरा शरीर दुख रहा है।”.. दोनों की आंखों से दर्द और गुस्सा दोनों पिघल कर निकल रहे थे।

नवीन के घर को तो दुख की काली रात ने घेर रखी थी। उजाले की किरण कहीं नजर नहीं आ रही थी। नवीन की मां का रो-रो कर बहुत बुरा हाल था। कभी वह रोते-रोते अचेत हो जाती, फिर उसके आंखों में पानी छिड़ककर चेतना में लाने का प्रयास करते, नरेंद्र तथा प्रवीण। नरेंद्र और प्रवीण सिर झुका कर बैठे हुए थे। प्रवीण तो पत्थर जैसा हो गया था, अपने छोटे भाई को खो कर। बहुत स्नेह था उसे अपने छोटे भाई से।

थोड़ी देर बाद हवलदार को लेकर दरोगा पहुंच गया नवीन के घर। आते ही प्रश्नों का बौछार करने लगा प्रवीण पर..” तुम्हारे कौन कौन से दोस्त हैं? और किसका किसका तुम्हारे यहां उठना बैठना है? सारी जानकारी दो हमें, तभी हम खूनी को पकड़ सकते हैं।”
“एक ही दोस्त है जो सबसे करीब है मेरे। उसका नाम है रहमान, इसी गांव का रहने वाला है।,”.. प्रवीण ने आंखों में आंसू लिए जवाब दिया।
“तो चलो गाड़ी में बैठो और हमें ले चलो रहमान के घर।”.. दरोगा ने कहा।

अपने आंगन में बैठकर सुबह सुबह की धूप सेक रहा था रहमान। ठंड का मौसम था, गुनगुनी धूप पूरे शरीर को उष्ण कर एक सुखद अनुभव दे रही थी। वह धूप में बैठे बैठे कोई मधुर फिल्मी गीत सुन रहा था। दरोगा को देखकर एकदम आश्चर्यचकित होकर उठ खड़ा हुआ और कुर्सी खिसकाते हुए कहा”.. बैठिए साहब!”
“हम यहां पर बैठने के लिए नहीं आए हैं। हम जो पूछेंगे, उसका सही से जवाब देना, जवाब तलब करने आए हैं!”.. दरोगा ने रौब दिखाते कहा।
अपनी मूछों पर ताव देते हुए दरोगा ने सबसे पहले पूछा..” कल रात को तुम कहां थे? और क्या कर रहे थे? सारा विवरण हमें दो।”
“साहब हम तो किसान है खेत में काम करने वाले लोग। काम खत्म करके 7:00 बजे तक घर आ गए थे, फिर घर में बैठकर टीवी देख रहे थे।”.. रहमान ने शांत स्वर में कहा।
“झूठ बोल रहे हो तुम! जितने भोले दिखते हो उतने भोले नहीं हो। सच सच बता दो वरना हमें बात उगलनी भी आती है।”.. दरोगा की बातों में रौब स्पष्ट झलक रहा था
“साहब मैं सच बोल रहा हूं! मैं घर में ही था, मैं कहीं नहीं गया। पर.. आप पूछताछ क्यों कर रहे हैं? क्या हुआ जिसके लिए आप पूछताछ कर रहे हैं?”.. रहमान ने शांत स्वर में पूछा।
“स्साले, तू मुझसे सवाल जवाब कर रहा है? जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं, नवीन का खून तूने किया है, और बहुत भोला बन रहा है।”.. गुस्से से दरोगा की आंखें लाल हो गई थी।
“नवीन मेरा छोटा भाई जैसा है। उसका खून मैं क्यों करूंगा, बड़ा अच्छा लड़का है वह।”.. रहमान ने डरते डरते जवाब दिया।
“रुपए के खातिर, दुकान में अकेला था देख कर रेत दिया उसका गला। तुम जैसो पर कोई भरोसा नहीं है मेरा!”.. दरोगा ने दो तमाचे जड़ दिए रहमान के गाल पर।
अपने गाल पर हाथ फेरते हुए रहमान ने कहा..” मुझे रुपए पैसे की लालच नहीं है, मैं मेहनतकश इंसान हूं और मेहनत करके खाता हूं! प्रवीण मेरा बहुत अच्छा दोस्त है। उसके भाई का भला मैं क्यों खून करूंगा।”
“तुम प्रवीण के दोस्त हो, तुम्हें पता ही नहीं है कि नवीन का किसी ने कल रात को खून कर दिया है।”.. दरोगा ने फिर रौब झाड़ते हुए कहा।
आश्चर्य से रहमान की आंखें फटी की फटी रह गई! उसने कहा..” हमें कुछ नहीं मालूम है साहब! कल प्रवीण से भी हमारी मुलाकात नहीं हुई, इतना पता था कि प्रवीण दूसरे गांव में किसी काम से जा रहा है। बस.. फिर मैं,प्रवीण के घर की तरफ मैं गया ही नहीं।”
“इसके हाथों में हथकड़ी लगाओ। और.. स्साले को थाने ले चलो, सब उगल देगा। इतना भोला बन रहा है, वही जाकर इसकी खातिरदारी होगी।”.. अपने मूछों पर ताव देते हुए दरोगा ने कहा और मन ही मन सोच रहा था..” हो ना हो यह हिंदू-मुस्लिम मामला है!”
“साहब मैं गवाह हूं, कल रात को मेरा बेटा घर पर ही था। घर में बैठकर कोई सिनेमा देख रहा था। वह कहीं गया ही नहीं, खेत से काम करके सीधा घर आ गया था। इसे थाने मत ले जाईए साहब!”.. हाथ जोड़कर रहमान के पिताजी रशीद अली दरोगा से मिन्नतें करता रह गया।

रशीद अली ने एक दिन सुबह सुबह आकर प्रवीण से कहा…”बेटा दो दिन हो गए, मेरा रहमान अभी तक घर नहीं आया है। पुलिस ने उसे थाने में बंद करके रखा हुआ है। वह बेकसूर है,खून के बारे में कुछ भी पता नहीं है उसे। बेकसूर को जबरदस्ती दरोगा ने बंद करके रखा। मेरे बेटे को छुड़ाने की कोई व्यवस्था करो। मेरी तुमसे हाथ जोड़कर गुजारिश है।”.. आंखों में आंसू लिए राशिद अली ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
“चाचा, आप चिंता मत करो। मैं आज जाता हूं थाने, दरोगा से जमानत लेकर रहमान को लेकर आता हूं वापस।”.. प्रवीण ने राशिद अली को सांत्वना देते हुए कहा।

दोपहर को स्कूल जाने का बहाना करके, सलमा नवीन के घर आई थी सब की खबर लेने। हाल चाल पूछने। सलमा को देखते ही नवीन की मां निशा बिलख बिलख कर रोने लगी..” हाय सलमा, मेरे नवीन को किसी ने मार दिया। उसका कोई दुश्मन नहीं था इस गांव में। सब से दोस्ती, यारी करके रहता था मेरा नवीन। किसने मार दिया उसे। मेरी कोख सुनी कर दी।”
निशा को रोते देखकर सलमा भी रो पड़ी, रोते हुए उसने कहा..” चाची, जो भी है खूनी, उसे तो सलाखों के पीछे जाना ही पड़ेगा। एक मासूम की हत्या करके कोई बच नहीं सकता। अल्लाह पर भरोसा रखो। अल्लाह के घर देर है अंधेर नहीं है!”

सलमा और नवीन एक ही कक्षा के विद्यार्थी थे। एक दूसरे से भलीभांति परिचित थे। सलमा नवीन को अपने छोटे भाई जैसा मानती है और कभी कभी उसके घर आती जाती रहती है। क्योंकि नवीन में भोलापन बहुत था और पढ़ने में भी होशियार भी था। सबकी मदद करने में वह सबसे आगे रहता था। गांव वाले सभी नवीन के व्यवहार से खुश रहते है, इसलिए सब लोग उसे पसंद करते है।

थोड़ी देर बाद अपने मूछों पर ताव देते हुए दरोगा और एक पुलिस नवीन के घर के आंगन में दाखिल हुआ। दरोगा को देख कर सलमा जाने लगी तो दरोगा ने उसे रोक कर कहा..” रुको, रुको, तुम कौन हो? यहां क्या करने आई हो और मुझे देखते ही क्यों जा रही हो?”
सलमा की ठिठककर रुक गई उसके चेहरे पर डर की लकीरें स्पष्ट झलक रही थी। उसका चेहरा बिल्कुल सफेद पड़ गया था, काटो तो जैसे खून नहीं। एक तो खून का मामला, ऊपर से दरोगा को देख कर तो कोई भी डर जाएगा।
“यह सलमा, दरोगा साहब, नवीन के साथ पढ़ती है तो कभी-कभी हमारे यहां आ जाती है।..” प्रवीण ने दरोगा साहब के प्रश्नों का जवाब दिया।
“मैंने इससे पूछा, तो इसी को जवाब देने दो। तुम क्यों बीच में पढ़ रहे हो। गूंगी तो नहीं है ना ये। जहां तक मैं जानता हूं यहां दो टोलियां हैं। एक हिंदू टोली,और एक मुसलमान टोली। तुम तो मुसलमान टोली की ठहरी, फिर हिंदू टोली में तुम्हारा क्या काम?”.. फिर वही रौबदार आवाज निकली दरोगा के मुंह से। दरोगा को कुछ तो दाल में काला लग रहा था।
“जी, जी, जी साहब मैं यहां नवीन की बात सुनकर सब से मिलने आई हूं। नवीन और हम एक ही क्लास में पढ़ते थे ना, इसलिए।”.. डर के मारे सलमा का चेहरा सफेद पड़ गया था।
“ठीक है जाओ, तुमसे बाद में मिलकर बात करेंगे।”.. इंस्पेक्टर ने फिर रौबदार आवाज में कहा।

“हां, तो.. मैं यहां इसलिए आया था कि, प्रवीण तुमने बताया नहीं इरफान से तुम्हारी दोस्ती है। मुझे तो रहमान ने बताया कल। इरफान के साथ तुम्हारा उठना बैठना है, यह बातें मुझसे क्यों छुपाई? और सलमा और तुम्हारे बीच में कुछ लफड़ा है, जिसके कारण इरफान और उसका वालिद तुमसे नाराज है? बात कुछ हजम नहीं हो रही है। बात छुपाओगे तो हम खूनी को नहीं पकड़ पाएंगे। फिर हमें दोष मत देना।”.. दरोगा ने गुस्सा दिखाते हुए प्रवीण से कहा।
“दरोगा साहब हम एक दूसरे से प्यार करते हैं। यह बात पूरे गांव वाले जानते हैं, परंतु हमें इरफान और उसके वालिद से कोई दुश्मनी नहीं है। वे लोग पसंद नहीं करते हमारा मिलना जुलना। बस.. हम कभी कभी चुपके चुपके मिल लेते हैं। इसमें रहमान हमारी मदद करता है। वे लोग इतने बुरे नहीं हैं कि नवीन का खून कर देंगे। बस.. हमसे नाराज भर है।”.. प्रवीण ने थोड़ा डरते डरते, शर्माते शर्माते कहा।

दरोगा को लग रहा था हम खूनी के नजदीक पहुंच रहे हैं, पर.. पहुंच कर भी खूनी हमारे हाथ नहीं आ रहा है। कोई सुराग नहीं मिल रहा है। एक तरह से खिचड़ी सी बन रही है। किसने किया होगा खून? प्रवीण का दोस्त रहमान ने, प्रवीण की प्रगति देख कर उससे जलन के मारे, या फिर नवीन के दोस्त नवीन की दुकान से रुपए पैसे चुराने के लिए। या फिर इरफान और उसके वालिद सलीम खान ने। क्योंकि उनको अपनी बेटी का प्रवीण से मिलना जुलना बिल्कुल पसंद नहीं था। एक अजीब सी उलझन मन में लिए,‌ दरोगा सोचते-सोचते अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया..!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com