गीतिका/ग़ज़ल

इंसाँ सब बँट गए हिन्दू और मुस्लिम में

मेरे मोहल्ले में झूठ का बाज़ार आ गया है
दरवाज़ा खोलके देखो,अखबार आ गया है

जिन नन्हीं हथेलियों को खिलौनें चाहिए थीं
उन हाथों में खतरनाक औज़ार आ गया है

इंसाँ सब बँट गए हिन्दू और मुस्लिम में
धर्म के ठीकेदारों को कारोबार आ गया है

पूँजीपतियों की नींदें हराम हो गई हैं
जबसे शहर में कोई गाँव बीमार आ गया है

उजाड़ दी गईं सारी बस्तियाँ ही बस्तियाँ
उनके रास्ते में आलीशान मीनार आ गया है

सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com