कहानी

नया सवेरा

 नया सवेरा
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गंगापुर में रहनेवाला बिरजू एक सामान्य सा किसान था । अपनी थोड़ी सी खेती में मेहनत करके अपने दोनों बेटों के साथ हँसी खुशी जीवनयापन करता था । खेती से जो भी उत्पन्न होता उसी को भगवान की कृपा मानकर अभावों में भी सदैव खुश रहता ।
आधुनिकता और विकास की बयार बहते हुए धीरे धीरे गांवों तक पहुँच गई । एक दिन गाँव में बिजली पहुँच गई। अन्य लोगों की देखादेखी उसने भी कुछ पैसे जमाकर घर में बिजली का मीटर लगवा लिया । बहुत खुश हुआ था वह रात में पूरे घर को रोशन होता हुआ देखकर ।
एक दिन शहर से अनाज बेचकर मिले हुए पैसे से उसने एक टेलीविजन सेट खरीद लिया । पूरा परिवार खुशी से झूम उठा । पूरे गाँव में सरपंच को छोड़कर किसी के पास टेलीविजन नहीं था । खुशी से इतराते बिरजू के घर देर रात तक टेलीविजन पर तमाशा जारी रहता । अडोस पड़ोस के कोई न कोई जरूर बैठे होते टेलीविजन शुरू करने की फरमाइश लेकर !
समय अपनी गति से चल रहा था । फटे पुराने कपड़ों में भी खुश रहनेवाले बिरजू के दोनों बेटे अब जब तब शहर चले जाते और अपने लिए नए फैशन के कपड़ों का जुगाड़ अवश्य कर लेते । टेलीविजन देखकर बड़े पर्दे पर सिनेमा देखने का भी शौक जब तब उछाल मारने लगता । घर में अब यदा कदा पैसे की तंगी को लेकर खिचखिच शुरू हो गई । बहुत दिनों से बिजली का उपयोग करने के बाद अचानक एक दिन बिजली विभाग से 16 हजार रुपये बकाए की नोटिस देखकर बिरजू के पैरों तले से जमीन खिसक गई । किसी तरह से जुगाड़ करके  उसने बिजली विभाग का बकाया भर दिया ।
बड़े लड़के की शादी भी उसने बड़ी धुमधाम से की । मित्रों के उकसाने पर कि ‘ शादी ब्याह रोज रोज थोड़े न किया जाता है ‘ उसने गाँव के साहूकार से कर्ज लेकर शादी में अपनी औकात से बढ़कर खर्च किया । लड़के ने जिद करके शादी में ससुर से मोटर साईकल माँग लिया था । अब अक्सर मोटरसाइकिल में पेट्रोल भरने के नाम पर पैसे खर्च होने लगे । सारा पेट्रोल बस शौक के नाम पर धुआँ बनकर उड़ जाता और साथ में कम कर जाता जेब में रखी हुई कुछ नकदी ।
दहेज की लालच में अपने से अमीर घर की लड़की को बहू के रूप में लाने की वजह से अब उसके घर का खर्च भी बढ़ गया । लोकलाज की खातिर बहू की जायज नाजायज फरमाइशें भी पूरी होने लगी थीं ।
शादी के लिये लिए गए कर्ज पर अब हर महीने व्याज के रकम की भी जुगाड़ करनी पड़ रही थी । जुगाड़ आखिर कब तक करता ? कई महीनों से साहूकार के पैसे का व्याज नहीं दिया गया था । हमेशा इज्जत से पेश आनेवाला साहूकार एक दिन सरेआम गाँव वालों के सामने उसकी बेइज्जती कर गया और इस बार फसल बेचकर कर्ज नहीं चुकाने पर देख लेने की  धमकी दे गया ।
रूखी सूखी खाकर चैन की नींद सोनेवाले बिरजू की अब रातों की नींद हराम हो गई थी। बच्चे भी देर रात तक टेलीविजन देखने की वजह से सुबह जल्दी उठने से कतराने लगे । इन सबका असर खेतों में कामपर तो पड़ना ही था । और इसका सीधा असर उसके खेतों में फसलों के उत्पादन पर भी होने लगा ।
साहूकार का कर्ज अब उसके गले की हड्डी बन गई थी । उसने इस बार पूरी मेहनत और लगन से गेहूँ की फसल बोई थी । उसकी मेहनत खेतों में फसल के रूप में लहलहा उठी । लहलहाती फसल देखकर बिरजू को अपने दिन बहुरने की उम्मीद बढ़ी लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था ।
अचानक खराब हुए मौसम की वजह से हुई ओलावृष्टि ने उसकी पूरी फसल को तहसनहस कर दिया । लहलहाती फसल अब खेतों में घास की मानिंद बिखरी पड़ी हुई थी । खेतों में फसल बर्बाद होने के साथ ही बिरजू का साहूकार से मुक्ति पाने का सपना भी बिखर गया ।
एक दिन गाँव के प्रधान ने किसी कागज पर उसके अँगूठे का निशान लेते हुए बताया ‘ बहुत जल्द ही तुम्हें सरकार की तरफ से नुकसान हुए फसलों की भरपाई के एवज में मोटी रकम मिलेगी । ‘
सुनकर उसे थोड़ी तसल्ली हुई । साहूकार द्वारा पूछे जाने पर उसने सरकार से मुआवजे की रकम पाते ही उसका कर्ज चुका देने की बात कही । बात सच भी थी कि उसे मुआवजा मिलने वाला था अतः साहूकार उसको सरकारी मदद मिलने तक का समय देकर चला गया ।
आखिर वह दिन भी आया जब प्रधान के यहाँ से उसको संदेश मिला ‘ सरकारी मदद आ गई है । आकर अपना चेक ले जाओ । ‘
बड़े खुशी मन से बिरजू गाँव के प्रधान के यहाँ पहुँचा । एक रजिस्टर में अँगूठा लगाकर बिरजू को चेक नाम का वह कागज मिल गया जिसका वह बेसब्री से इंतजार कर  रहा था । बीस रुपये खर्च कर वह शहर बैंक में गया चेक जमा करने के लिए जहाँ उसे पता चला सरकार ने उसके जैसे ही अन्य किसानों के साथ भी कैसा भद्दा मजाक किया था । उसे पूरे 90 रुपये का चेक मिला था जिसमें से 40 रुपये शहर आने जाने के ही खर्च हो जाने थे । अपना माथा पीटता बिरजू वापस अपने घर पहुँचा ही था कि साहूकार आ धमका । बिरजू की पूरी बात सुनने के बाद वह बोला ,” वो सब मुझे कुछ नहीं मालूम ! तुम पैसे कैसे दोगे यह तुम्हें सोचना है । मुझे अपने पैसे वापस चाहिए किसी भी हाल में । तीन दिन की और मोहलत देता हूँ । तीन दिन बाद फिर आऊँगा और पैसे नहीं मिले तो गाँव भर में तुम्हारी बेइज्जती करुँगा । “
आसन्न अपमान के ख्याल से ही बिरजू के हाथ पाँव फूल गए थे । गाँव और समाज में अपनी जिस शान को बढ़ाने के नाम पर वह कर्जदार हो गया था अब वही शान खतरे में पड़ गई थी ।
खाना खाकर बिस्तर पर लेटा वह सोने का प्रयास करता रहा लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी । पिछले दिनों की तस्वीर उसके सामने घूमने लगी जब विकास की झलक भी उसके गाँव तक नहीं पहुँची थी । सभी तरह के अभावों में भी वह कितना सुखी था । रूखी सूखी खाकर भी उसका परिवार कितना खुश रहता था । कभी फसल खराब भी हुई तो मेहनत मजदूरी करके अपना गुजर बसर कर लेता था लेकिन अब तो वह भी मुमकिन नहीं था ।  समाज की नजर में अब वह गरीब बिरजू नहीं रह गया था जो दो कोस दूर शहर पैदल ही चला जाता था । अब तो उसे लोगों के सवालों से बचने के लिए जेब में पैसे न रहने पर किसी से उधार लेकर ही सही लेकिन किसी सवारी से ही शहर जाना होता था । कपड़े भी हमेशा साफ सुथरे और अच्छे पहनने पड़ते । मेहनत मजदूरी करने के बारे में तो अब वह सोच भी नहीं सकता था । लोग हँसेंगे तब क्या उसकी बेइज्जती नहीं होगी ? क्या करे ? कैसे अपनी इज्जत बचाये ? वो इज्जत जो उसने अपना सुख चैन और रातों की नींद गँवा कर कमाया था ।
बेइज्जती के अहसास ने उसके हाथ पाँव फुला दिए थे । बेचैनी से करवटें बदलते बिरजू ने आखिर एक कड़ा फैसला कर लिया और खटिये पर से उठकर बिना चप्पल पहने ही गाँव के बाहर की तरफ चलने लगा । रामधारी चौबे के घर के सामने बने कुएँ में वह छलाँग लगाने जा ही रहा था कि तभी किसी की मजबूत बाहों में वह झूल कर रह गया । पलट कर उसने देखा , वह सुखिया था , उसका हमउम्र , उसका पड़ोसी , उसका बचपन का दोस्त । उसे देखते ही वह उससे लिपटकर फुट फुट कर रो पड़ा । सुखिया ने उसे धीरज बँधाते हुए समझाया ,” ये तू क्या करने जा रहा था ? इसके पहले तूने तनिक भी नहीं सोचा अपनी बीवी और बच्चों के बारे में ? “
” सोचा था सुखिया ! सोचा था ! तू तो बचपन का साथी है । तुझे पता है हम लोग किस शान से रहते थे । लेकिन अब परिस्थिति ऐसी आ गई है कि ऐसा लगता है कि इस तरह बेइज्जत होने से बेहतर है मर जाना ! ” कहते हुई बिरजू पुनः रो पड़ा ।
 ” बेवकूफ है तू ! मरना क्या किसी समस्या का समाधान है ? तू क्या सोच रहा है कि तू मर जायेगा
तो वह साहूकार अपना पैसा माफ कर देगा ? नहीं ! उल्टे वह ज्यादा भी ले सकता है उल्टे सीधे हिसाब समझाकर । और तब तेरी बेइज्जती नहीं होगी जब पूरी दुनिया के लोगों को तेरी कहानी चटखारे लेकर नमक मिर्च लगाकर सुनाई जाएगी ? टेलीविजन में बहस होगी , नेता राजनीति करेंगे और तेरे परिवार को जनता के सामने बेचारा बनाकर पेश किया जाएगा । कुछ दिन नेता आके घड़ियाली आँसू बहाकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करेंगे और फिर कुछ दिनों के बाद फिर यही कहानी तेरे बेटे को झेलनी पड़ेगी ।
ये अंतहीन आत्महत्याओं का सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा । इससे बचने का एकमात्र उपाय है । सड़क के किनारे की अपनी परती पड़ी जमीन को बेच कर साहूकार के पैसे दे दे और बचे हुए पैसे से कोई रोजगार कर ले । धीरे धीरे सब सही हो जाएगा । जब घर में रोजगार हो जाएगा तो तेरे सहित बच्चे भी उसी में व्यस्त रहेंगे और व्यर्थ के खर्चे भी बचेंगे । हर समस्या का समाधान सरकार के पास नहीं हो सकता । कुछ जिम्मेदारियां हमारी भी बनती हैं देश के प्रति ! जरा शांति से मेरी बात पर गौर करना । सारी बात तेरे समझ में आ जायेगी ।  ” समझाते हुए सुखिया बिरजू को लिए हूए उसके खटिये तक पहुँच गया था । बिरजू ने भावावेश में उसके पाँव पकड़ते हुए कहा ,” इस तरह से तो मैं कभी सोच ही नहीं पाया था । तुम्हारा अहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा ! “
सुखिया वापस चला गया था । बिरजू के चेहरे पर अब शांति थी और मन में था एक दृढ़ विश्वास अपने संकल्प को लेकर ! बिस्तर पर पड़ते ही वह नींद की आगोश में समा गया । एक नया सवेरा उसके जीवन में दस्तक देने वाला था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।