कविता

फिर सदाबहार काव्यालय-3

इन्तजार

हर पल उसका इन्तजार रहता है,
दिल उसके लिए बेकरार रहता है,
इन्तजार कभी खत्म न हो,
इस बात का हमेशा ख्याल रहता है.

हालत कह रहे हैं मुलाक़ात नहीं मुमकिन
उम्मीद कह रही है थोड़ा इन्तजार कर,
कभी खत्म न हो यह इन्तजार,
ऐसा कहती है दिल की पुकार.

कब रास्ता बन जाए मंजिल,
उस दिन का है इन्तजार,
वो कौन है जिसका है इंतजार?
वो कौन है जो कर रहा इंतजार?

जिसका अंत न हो अंत तक,
उसका है इंतजार,
वो ही बताए आकर हमको,
किसका कौन करे इंतजार?

फिर भी चाहत दिल में बरकरार,
भूले न भुलाये बार-बार,
एक बार तो हो जाए उसका दीदार,
जिसका कर रहे इन्तजार.

 

आता नहीं दिल को करार,
इन्तजार में बसता प्यार,
इन्तजार को नमस्कार,
इन्तजार बस इन्तजार.
रविंदर सूदन

 

 

अपने बारे में कुछ कहना, अपना परिचय देना कितना मुश्किल है, यह वही जानता है, जिसे अपना परिचय देना पड़ता है. मेरे साथ भी यही हुआ. आदरणीय लीला दीदी के काव्यालय-२ की कविता ‘पुस्तकें’ से अपना परिचय मुझे पता चला. स्कूली पुस्तकें कभी अच्छी नहीं लगती थी स्वामी विवेकानंद, कबीर दास जी, गुरु नानक देव जी, संत रैदास जी, महाभारत, रामायण, अरस्तू, कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ पढ़ीं. अखंड ज्योति के बाद ओशो की लगभग 50% पुस्तकें पढ़ीं. आज जो थोड़ा-बहुत कलम पकड़ना सीखा है इन्ही पुस्तकों की देन है.

ओशो जी ने कहा है कि बाजार में जाकर चीजें देखते ही न रहो खरीदो भी, गुरु ढूंढो, ढूँढ़ते ही न रहो किसी को अपनाओ भी. ओशो जी से मिला भी.

चंद रचनाएं नवभारत, जयविजय में छप चुकी हैं. सन 2002 में सहज मार्ग मिशन से जुड़ा आज तक जुड़ा हूँ. संस्थापक बाबूजी महाराज पर लेख संतों के संत बाबूजी महाराज नाम से नवभारत में लिख चुका हूँ.

लीला बहन जी की प्रेरणा से पाठकों-ब्लॉगरों से मुखातिब हो सका. कविता का abc या कखग भी नहीं आता था, बहन जी ने प्रोत्साहन दिया, दिल से जो आवाज आई उसे लिख दिया. आश्चर्यजनक यह है कि यह आवाज बीमारी के ख़त्म होने के बाद ही आती है.

अपना ब्लॉग की वेबसाइट
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/ravisudanyahoo-com/

जय विजय की वेबसाइट
https://jayvijay.co/author/ravindersudan/

 

दिल से मेरा मानना है-
”हर मन एक माणिक्य है,
उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं.”

रविंदर सूदन

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय-3

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, अपने में अलौकिक और इहलौकिक अर्थ समाए हुए आपकी यह आध्यात्मिक रंग में सराबोर यह कविता हमारे सदाबहार काव्यालय का हिस्सा बनी, यह हमारे लिए हर्ष और गौरव का विषय है. आध्यात्मिक रंग में सराबोर स्वयं रवि सूर्य के समान संसार को प्रकाशमान करने आएं, इससे बढ़कर हर्ष की बात और क्या हो सकती है. आपने परिचय में लिख भेजा है- ”चंद रचनाएं नवभारत, जयविजय में छप चुकी हैं.” ‘च’ से चंद और ‘च’ से चालीस तो होता ही है, पर ‘च’ से चमत्कार भी होता है. आपकी हर रचना एक चमत्कार है. अभी बस इतना ही. रुकिए-रुकिए, यहां भी एक संयोग निकल आया. आपकी जन्मतिथि भी 3 और फिर सदाबहार काव्यालय में भी 3. क्या अद्भुत संयोग है!

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