लघुकथा

मनु-मंथन

जब भी नारी के सम्मान की बात की जाती है, अनायास ही मनुस्मृति का यह कथन याद आ जाता है-

”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः.”

तब के मनु ने मनुस्मृति में न जाने कितने समय के मन-मंथन के बाद यह लिखा होगा, लेकिन कर्नाटक के आज के मनु को शायद जेल जाने से पहले मन-मंथन का समय ही नहीं मिल पाया होगा, इसलिए वह कुछ ऐसा अपराध कर बैठा, कि मैसूर की जेल में कैदी बनकर आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.

 

तीन साल पहले मनु जब कारावास में आया, उस समय वह डिप्रेशन से गुजर रहा था. बाद में उसने जेल की लाइब्रेरी में रामायण और महाभारत पढ़ना शुरू किया. इसके बाद ही उसके विचार और सोच में परिवर्तन आया. उसको अपनी गलती का भी अहसास हुआ. किताबों ने उसे राहत और शांति दी थी. यही राहत व शांति अब वह अन्य लोगों को भी देना चाहता है. उसके लेखक बनने का समय जो आ गया था.

 

मनु ने अब तक 20 से ज्यादा कहानियां और कई सारी किताबें लिख डाली हैं. मनु की लिखी कहानियां और किताबें स्थानीय और राज्य स्तरीय अखबारों में भी पब्लिश हो चुकी हैं. मनु की कहानी ‘बिसिलु जिनके’ ने स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित कहानी प्रतियोगिता भी जीती थी. मनु हाल की खबरों पर कहानियां और कविताएं लिखने में निपुण है.

 

मनु ने जेल की लाइब्रेरी में कई कन्नड़ लेखकों जैसे कुवेम्पु, डा रा बेंद्र और पूर्णचंद्र तेजस्वी की किताबें पढ़ी हैं. उसे ए एन कृष्णा राव का साहित्य भी बहुत पसंद है. ग्रैजुएशन तक की शिक्षा ले चुके मनु की इच्छा है, कि अब वह आगे की पढ़ाई भी कर सके. मनु अपनी कहानियों की एक किताब भी छपवाना चाहता है. लिखने के अलावा मनु गाना गाने और आर्ट बनाने में भी एक्सपर्ट है.

 

मिले हुए खाली समय के सदुपयोग से मनु के मन-मंथन ने मनु-मंथन का रूप ले लिया है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मनु-मंथन

  • लीला तिवानी

    जेल में किताब लिखने की सदियों पुरानी परंपरा के बारे में भी उसने पढ़ा था.
    जेल में किताब लिखने की परंपरा सदियों पुरानी है जो आज भी बदस्तूर जारी है और आगे भी जारी रहेगा। अगर हम भारतीय इतिहास की बात करें तो महत्मा गांधी से लेकर भगत सिंह ने आपनी जेल यात्रा और स्वतंत्रता को लेकर ‘जेल डायरी’ लिखी जो बाद में हमारे सामने किताबों की रूप में आर्इं। अगर हम बड़ी किताबों की बात करें तो उसमें बाल गंगाधर तिलक की ‘गीता रहस्य’ और जवाहरलाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी आॅफ इंडिया’ को शामिल किया जा सकता है, जिसने देश, समाज और युवाओं को नई दिशा दी है। कई अपराधियों ने भी किताबें लिखी हैं।

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