लघुकथा

नमक का मूल्य

नमक का मूल्य

टेलीविज़न पर ख़बर आती है कि एक ही घर के चार लोगों ने आत्महत्या कर ली! बस फिर क्या था रोज़ यही ख़बर और सब आँख गड़ाये सोचते रहते कि आख़िर ऐसा किया क्यों? मीडिया वालों को भी काम मिल गया और लोगों को भी।
मीडिया वालों की बातें सुनकर सब अपने घरों में यही अनुमान लगा रहे थे कि किसी ने ज़हर दिया है नहीं तो ऐसा होना मुश्किल है। भला अपनेआप को कोई बिना वजह कैसे ख़त्म करेगा? अब जितने मुँह उतनी बाँतें। ख़ैर कुछ दिन सिलसिला चलता रहा। पुलिस काम में मुस्तैद रही।
एक दिन ख़बर आती है कि किसी ने बहला-फुसला कर दौलत के लालच में ऐसा किया है। यह ख़बर हरि के कानों तक भी पड़ी। जो उस घर में ड्राइवर की नौकरी करता था। अब उससे चुप ना रहा गया। क्योंकि वह जानता था कि इस परिघटना के पीछे किसका हाथ है!
उसने पुलिस को बताया कि “यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है जो एक रची-रचाई साज़िश है। जिसे घर के मालिक ने प्रेमजाल में पड़कर रची है।”
“फिर तुम इतने दिन से चुप क्यों थे?” पुलिस का सवाल।
“क्योंकि मैनें मालिक का भी नमक खाया है और मालकिन का भी। एक का इतने दिन चुप रहकर चुका दिया और एक का अब बताकर।” कहते-कहते गमहीन हो जाता है।
“बहुत अच्छा परिवार था! पर पता नहीं किसकी नज़र लग गई।” वह फिर जोर से चिल्लाता है कि हे भगवान सबको सद्बुद्धी दो! उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकलती है जो रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी।

मौलिक रचना
नूतन गर्ग(दिल्ली)

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक