मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

“मुक्तक”

युग बीता बीता पहर, लेकर अपना मान।
हाथी घोड़ा पालकी, थे सुंदर पहचान।
अश्व नश्ल विश्वास की, नाल चाक-चौबंद-
राणा सा मालिक कहाँ, कहाँ चेतकी शान।।-1

घोड़ा सरपट भागता, हाथी झूमे द्वार।
राजमहल के शान थे, धनुष बाण तलवार।
चाँवर काँवर पागड़ी, राज चाक- चौबंद-
स्मृतियों में अब शेष हैं, प्रिय सुंदर उपहार।।-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ