ब्लॉग/परिचर्चा

फिर सदाबहार काव्यालय-4

मैंनूं कुछ कहणा है

(भाषा- पंजाबी, आगे हिंदी अनुवाद)

मैं छोटा सी ते पिण्ड विच रहंदा सी
घर कच्चे सन, ते प्यार पक्के सन
पिण्ड दे सारे चाचे-चाचियाँ
मैनूँ पुत्तर-पुत्तर कहंदे सन

मैं कदे किसी दे घर खांदा सी
ते कदे किसी दे घर
कदि कदि मैं किसे दे घर ही सों जांदा सी
सारे इक दूसरे दि फिकर करदे सन
ते मदद वी करदे सन

कोई भेद भाव नहीं सी
मुसीबतां वी कट्ठे झेलदे सन
ते खुशियाँ वी कट्ठे मनांदे सन
अज बिल्डिंगां उच्चियाँ हो गइयां हन

प्यार डुब गये हन
ढूंढेयाँ ढूंढेयाँ प्यार कित्थे-कित्थे मिलदा है
पड़ोसी दी गल छड्डो, 
भैन-भ्रा ही दूर हो गये हन
जे दूर नहीं होये तो सिर्फ उपरों उपरों
फार्मेलिटी ज़िन्दाबाद

कुछ कुछ परिवारां विच कुछ देर वास्ते
प्यार नज़र आ जांदा है
किसे दा कसूर नहीं,
हवा ही ऐसी हो गई है

हवा विच पाल्यूशन, पानी विच पाल्यूशन
खान-पीन दियां चीजां विच पाल्यूशन
ऐत्थो तक कि दिल्लां विच भी पाल्यूशन हो गया है
संस्कार ही पाल्यूशन वाले हन

साड्डे शरीर विच एमएमआर सिस्टम होंदा है
(मिसमैच रिपेयर सिस्टम 
जेड़ा आपणे आप रिपेयर करदा रहंदा है)
रिश्तयां विच वी एमएमआर सिस्टम होंदा है

परिग्रह, सामंजस्य, संवाद, सहिष्णुता
अजकल परिग्रह घट गया है
अपणे मुँह मियाँ मिट्ठू बणना 
ते अपणी पहचान ज्यादा जरूरी हो गयी है

संवाद किन्ना मज़बूत है, 
कामयाबी इसदे उत्ते निर्भर करदी है
सहिष्णुता मज़बूरी दा नां बण गया है
दिल्लों नहीं निभाई जांदी

ज़माना बहुत बदल गया है
साड्डे वेले रिश्ते सत्त जनम दे होंदे सन
अज इक जनम वी पूरा नहीं होंदा

फेरयाँ ते दोस्तां ने पुछया –
एक्सपायरी डेट की है ?
वेलिडिटी पीरियड किन्ना है ?
एह मज़ाक सी पर किन्नी वड्डी सच्चाई बन गई है

लेकिन फिर वी कुछ लोग चंगी भावना नाल 
दूसरेयाँ दी सेवा करदे हन
अनजान लोगां दी पढ़ाई ते ओना दे इलाज वास्ते 
झट पैसे देन नूँ तैयार हो जांदे ने
कुछ लोग श्रमदान करदे ने

जद तिकन सूरज हर रोज चढ़दा रहेगा
चाँद चमकेगा, तारे टिमटिमानगे, 
चंगाई खतम नहीं होवेगी
चंगा होंदा रहेगा, कदे चंगा ते कदे मंदा ।

नरिंदर कुमार वाही

पंजाबी की इस कविता का हिंदी अनुवाद-

मुझे कुछ कहना है

मैं छोटा था और अपने पिण्ड में रहता था
घर कच्चे थे, पर प्यार पक्के थे
पिण्ड के सारे चाचे-चाचियाँ
मुझे पुत्तर-पुत्तर कहकर बुलाते थे

मैं कभी किसी के घर खा लेता
तो कभी किसी के घर
कभी-कभी तो मैं किसी और के घर ही सो जाता था
सभी एक दूसरे की फिक्र करते थे
और मदद भी करते थे

कोई भेदभाव नहीं था
मुसीबतें भी इकट्ठे झेलते थे
और खुशियाँ भी इकट्ठे मनाते थे

आज बिल्डिंगें ऊँची हो गई हैं
प्यार डूब गए हैं
ढूंढने से कभी-कभार प्यार मिल जाता है
पड़ोसियों की बात छोड़ दो
भाई-बहन ही दूर हो गये हैं
अगर दूर नहीं हुए तो 
सिर्फ दिखावटी प्यार रह गया है
फार्मेलिटी जिन्दाबाद

कुछ-कुछ परिवारों में कुछ देर के लिए
प्यार नज़र आ जाता है
कसूर किसी का भी नहीं है
हवा ही ऐसी हो गई है

हवा में पॉल्यूशन, पानी में पॉल्यूशन
खाने पीने की चीजों में पॉल्यूशन
यहाँ तक कि दिलों में भी पॉल्यूशन
हो गया है
संस्कार ही पॉल्यूटेड हो गए हैं

हमारे अन्दर एमएमआर सिस्टम होता है
(मिसमैच रिपेयर सिस्टम
जो अपने आप रिपेयर करता रहता है)
रिश्तों में भी एमएमआर सिस्टम होता है
परिग्रह, सामंजस्य, संवाद, सहिष्णुता

आजकल परिग्रह घट गया है
अपनी-अपनी तारीफ करते रहना
और अपनी पहचान बनाना 
ज्यादा जरूरी हो गया है

आपस में बातचीत कितनी मजबूत है
कामयाबी इसी पर निर्भर करती है
सहनशीलता मजबूरी का दूसरा नाम हो गया है
दिलों से नहीं निभाई जाती

ज़माना बहुत बदल गया है
हमारे टाइम में रिश्ते सात जन्म के होते थे
आज एक जन्म भी पूरा नहीं होता

फेरों के टाइम पर दोस्तों ने पूछा-
एक्सपायरी डेट क्या है ?
वेलिडिटी पीरियड कब तक है ?
यह मज़ाक था
पर कितनी बड़ी सच्चाई बन गई है!

लेकिन फिर भी लोग अच्छी भावना के साथ
दूसरों की सेवा करते हैं
अनजान लोगों की पढ़ाई और
उनके इलाज के लिए
झट पैसे देने को तैयार हो जाते हैं
कुछ लोग श्रमदान करते हैं

जब तक सूरज हर रोज उगता रहेगा
चाँद चमकेगा, तारे टिमटिमायेंगे
अच्छाई खत्म नहीं होगी
अच्छा होता रहेगा, 
कभी ज्यादा तो कभी कम ।
अनुवादक- सुदर्शन खन्ना

परिचय
मैं, नरिंदर कुमार वाही, उम्र 80 साल, अमृतसर का रहने वाला हूं। 39 सालों तक विदेशी बैंक की भारत स्थित शाखाओं में उच्च पदों पर कार्यरत रहा हूं। आजकल दिल्ली में रहता हूं। सेवा निवृत्ति के बाद इंडियन कैंसर सोसायटी से जुड़ा। इंडियन कैंसर सोसायटी के काम की मेरे दिल पर गहरी छाप है। इसके वॉलंटियर कैंसर के मरीजों का मनोबल बढ़ाते हैं। जरूरतमंदों के लिए दवाइयों की व्यवस्था भी करते हैं। कॉलोनियों, कॉलेजों, स्कूलों में जाकर जागरूकता फैलाते हैं। मोबाइल वैन में जगह जगह जाकर कैंसर सम्बन्धी जांच करते हैं। इंडियन कैंसर सोसाइटी ने मेमोग्राफी के प्रबन्ध भी किए हुए हैं । हर साल एक सेमिनार आयोजित किया जाता है। बहुत उच्च कोटि का काम कर रहे हैं।

 

फिर सदाबहार काव्यालय के लिए कविताएं भेजने के लिए ई.मेल-
tewani30@yahoo.co.in

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “फिर सदाबहार काव्यालय-4

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , नरिंदर कुमार वाही जी की पंजाबी में लिखी कविता पढ़ कर एक फिल्म की तरह मुझे मेरे गाँव के वोह दिन याद आ गए . कचे कोठे (मकान ) उन पर बार्ष के पानी के लिए बने लम्बे लम्बे परनाले, गलीओं में बैठे बजुर्ग जो आने जाने वाली बेटीओं के सर को देखते कि सर पर चुनी ठीक से है या नहीं, किसी बहु ने घगरा पहना हुआ है या नहीं, सादी जिंदगी, शुद्ध हवा , शुद्ध पानी जैसे फ़िल्टर किया हो, किसी बजुर्ग ने किसी दुसरे गाँव जाना तो पहले यह देखना कि उन के गाँव की कोई बेटी इस गाँव में विआही हुई तो नहीं, अगर हो तो उन को मिलने जाना और रूपया पियार देना . बजुर्गों ने खुद ही बच्चों के रिश्ते तय कर देने और हमारा भी ऐसे ही हुआ था जो बचपन में ही कर दिया गिया था और बारह साल बाद हमारी शादी ह्हुई थी . नरिंदर जी तो मुझ से भी पांच साल बड़े हैं और उन्हों को पार्टीशन के दिन भी अछि तरह याद होंगे की कैसे सब मिल जुल कर रहते थे . और आज जो हो रहा है , वोह भी नरिंदर जी ने लिख दिया है .सब से बड़ी बात जो इस उम्र में भी कर रहे हैं वोह है उन्हों की मानव सेवा .ਸਤਕਾਰ ਸਹਤ ਨਰਿੰਦਰ ਜੀ ਨੂੰ ਮੇਰੀ ਸਤ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ !!

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह वाही जी की पहली कविता है. बड़ी-बड़ी हस्तियां छिपी पड़ी हैं. आपकी कविता का इंतजार है.

  • लीला तिवानी

    आदरणीय नरिंदर कुमार वाही जी, आपकी बहुत सुंदर-सटीक-सार्थक कविता से हमारे मन का गुलशन महक गया. सरल पंजाबी की छोटी-सी कविता में आपने पारिवारिक रिश्तों का पूरा इतिहास बता दिया और अंत में आशा की किरण भी दिखा दी, जो एक महान कवि-लेखक का प्रमुख गुण है. उम्र के इस पड़ाव पर भी आपमें जो लेखन और समाज-सेवा का जोश और जज़्बा है, वह तारीफे-काबिल है. आप अपनी अन्य कविताएं भी भेजिए. हम अनुवाद करने के लिए तैयार बैठे हैं. आपको भी बहुत-बहुत धन्यवाद और सुदर्शन खन्ना जी को भी, जिन्होंने हमसे आपका परिचय करवाया और कृपापूर्वक कविता का हिंदी में अनुवाद भी कर दिया. अपने मित्रों की कविताएं भी भेजिए. एक बार पुनः आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.

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