लघुकथा

कैंडल मार्च

कैंडल मार्च
” गुप्ता जी ! काहें इतनी सारी मोमबत्तियाँ खरीद रहे हो ? कैंडल मार्च में इतने लोग थोड़े न आनेवाले हैं । “
” बंसल जी ! समझा करो ! हमारे कैंडल मार्च को कवर करने के लिए सभी चैनलों के रिपोर्टर आनेवाले हैं । बेरोजगारी वैसे भी कम नहीं और फिर जब चेहरा टी वी में आने की संभावना हो तो कौन घर बैठना चाहेगा ? अभी कल ही नेताजी से बात हुई है ‘ अपने पाँच सौ कार्यकर्ता तो उन्होंने ही भेजने का वादा किया है । बदले में कुछ नहीं देना है बस ,चाय नाश्ता देना है । और समझो अगर फिर भी मोमबत्तियाँ बच ही गईं तो ये आखरी कैंडल मार्च थोड़े न है ? कैंडल मार्च के मौके तो अक्सर मिलते ही रहते हैं । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।