ब्लॉग/परिचर्चा

कैलाश भटनागर: एक सच्ची फ़नकार- 1

”संयोग पर संयोग-7” के एक कामेंट में रविंदर भाई ने लिखा था-

”आदरणीय बहन जी, लोग जब कैनवास देखते हैं, प्रकति की सुंदरता को, कलाकार की कृति को देखते हैं, मैं केनवास बनाने वाले को, सुन्दरता से सजाने वाले को, कृति के पीछे छिपे कलाकार को देखता हूँ. कैनवास बनाने वाले कलाकार को देखता हूँ.”

आध्यात्मिकता से सराबोर यह बात कैलाश भटनागर के लिए बिलकुल सत्य है. कैसे? यही बताने के लिए हम यह ब्लॉग लिख रहे हैं और आपको मिलवा रहे हैं ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली 94 साल की भारतीय मूल की एक सच्ची फ़नकार से. इनका नाम है कैलाश भटनागर. कैलाश भटनागर यानी हिंदी साहित्य की एक एक सक्षम हस्ताक्षर. कैलाश भटनागर को हम दीदी कहते हैं, वैसे वे हमारी पूजनीय माताजी की उम्र की हैं, इसलिए कभी-कभी लाड़ में हम उन्हें माताजी भी कह देते हैं. उस समय वो हमें जो प्यार देती हैं, वह भी अत्यधिक सच्चा व खरा होता है. कहने का तात्पर्य यह, कि वे एक सच्ची इंसान भी हैं और सच्ची कलमकार भी हैं.

 

कैलाश भटनागर: एक सक्षम कलाकार

एक सक्षम हस्ताक्षर, कैलाश भटनागर

 

इसके अतिरिक्त कैलाश दीदी का एक और रूप भी है. वे एक महान चित्रकार भी हैं. कैलाश भटनागर: एक सच्ची फ़नकार हैं के इस पहले भाग में हम आज उनके इसी चित्रकार रूप की चर्चा करेंगे, दूसरे भाग में कलमकार की. आइए मिलते हैं- कैलाश भटनागर: एक सक्षम चित्रकार से.

September 24, 2015 को हमने एक ब्लॉग लिखा था- ”अभी मैंने शुरुआत ही की है”. यह ब्लॉग एक जापानी शख्स हिदेकिची मियाजाकी के असीम साहस के बारे में था. मियाजाकी ने 90 बसंत पार करने के बाद दौड़ना शुरु किया और 105 वर्ष की आयु से ऊपर की श्रेणी में ‘गोल्डन बूट’ रेकॉर्ड बनाया है. हमें इस कथा पर पूरा विश्वास था, इसलिए हमने उनकी कथा लिखी थी. मियाजाकी की यह कथा और बातें सुनी-सुनाई, पढ़ी-पढ़ाई थीं, लेकिन कैलाश दीदी की बात इससे बिलकुल अलग है.

 

अभी मैंने शुरुआत ही की है

अभी मैंने शुरुआत ही की है

कैलाश दीदी की कथा आंखों देखी है. उनसे हमारी मुलाकात आज से तीन साल पहले 9 जनवरी 2016 को सिडनी की AUSTRALIAN HINDI INDIAN ASSOCIATION यानी AHIA की वरिष्ठ नागरिकों की संगोष्ठी में हुई थी. वहां मैंने भी गीत-संगीत-कविता की प्रस्तुति की थी और कैलाश दीदी ने भी अपनी कविता प्रस्तुत की थी. बस एक समान रुचि से हमारी मुलाकात परवान चढ़ती गई. तब हमें उनके चित्रकार रूप का पता नहीं था.

फिर एक दिन हम उनके घर गए, तो एक उनकी टेबिल पर एक कैनवास पड़ा देखा, जिसमें आधी, पर बहुत सुंदर कृति बनी हुई थी, पर साफ दिख रहा था, कि वे गणेश जी के रूप को उकेर रही हैं. फिर क्या था! उनके कलमकार रूप को तो हम पहले जान ही चुके थे, सो बात उनके चित्रकार रूप पर चल पड़ी. फिर तो उन्होंने हमें अपनी बहुत-सी कृतियां दिखाईं.

आप सोच रहे होंगे, कि चित्रकार तो दुनिया में बहुतेरे हैं, हम कैलाशा दीदी की ही बात क्यों कर रहे हैं? कैलाश दीदी की कहानी कुछ-कुछ जापान के हिदेकिची मियाजाकी से मिलती-जुलती है. मियाजाकी ने 90 बसंत पार करने के बाद दौड़ना शुरु किया था, कैलाश दीदी ने भी 90 बसंत पार करने के बाद चित्र बनाना, पेंटिंग  करना शुरु किया था. उम्र के इस पड़ाव पर चार साल में उन्होंने जो काम कर दिखाया, वह तारीफेकाबिल है. उनकी एक-एक कृति अपने में अलग विशेषता समाए हुए है और अनुपम है. मजे की बात यह है, कि कैलाश दीदी ने इसके लिए कोई प्रशिक्षण नहीं लिया. इससे पहले वे दिवाली और अहोई आदि पूजन के लिए जो आकृतियां उकेरी जाती हैं, अपनी मां की देखादेखी बस वही उकेरती थीं.

कैलाश दीदी के इस रूप को निखारने में एक कोरियन महिला ”सही” की प्रमुख भूमिका रही. सही स्वयं बहुत अच्छी पेंटिंग करती हैं और अपने मिलने-जुलने वालों को भी इसके लिए प्रेरित करती रहती हैं. सही कैलाश दीदी के सुपुत्र विवेक के मित्र की पत्नी हैं. बातों-बातों में सही ने कैलाश दीदी को ऑस्ट्रेलियन ऑर्ट AB Original के बारे में बताया. कैलाश दीदी को लगा, कि नन्हे-नन्हे रंबिरंगे बिंदुओं वाला यह ऑर्ट तो भारत का भी बहुत पुराना ऑर्ट है. उन्होंने यू ट्यूब पर देख-देखकर इस ऑर्ट के बारे में बहुत-सी जानकारी प्राप्त की और काम शुरु कर दिया.

सही जी ने कैलाश दीदी को केवल प्रेरणा ही नहीं दी, समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करती रहीं, उनकी तारीफ करती रहीं और अंततः 2 दिसंबर 2018 को उनकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का आयोजन किया. यह प्रदर्शनी कैलाश दीदी के घर पर ही आयोजित हुई. सही जी और कैलाश दीदी के बच्चों और उनके बच्चों के बच्चों ने पूरे घर को ”एक शानदार प्रदर्शनी सभागार” का रूप दे दिया था. इस प्रदर्शनी के लिए कैलाश दीदी ने जिनको भी आमंत्रित किया था, वे सब सपरिवार आए थे और प्रदर्शनी की शोभा बढ़ाई थी.

कैलाश दीदी का कहना है. ”इस प्रदर्शनी में सही ने प्रदर्शनी की सजावट करने में अहम भूमिका निभाई, बच्चों ने और उनके बच्चों ने प्रदर्शनी को कामयाब बनाने में बहुत मेहनत की. प्रदर्शनी के आयोजन और कामयाबी का सारा श्रेय उनको जाता है.”
आने वाले दर्शकों की भूमिका को भी कैलाश दीदी बहुत श्रेय देती हैं. उनका कहना है- ”सब लोग आए, मेरा उत्साह बढ़ाया, मुझे बहुत अच्छा लगा.”
हमने भी कैलाश दीदी के लिए एक कविता का वाचन किया था, जो दीदी को बहुत अच्छा लगा. यह कविता अगले भाग में. फिलहाल कैलाश दीदी का भावुक कथन और प्रदर्शनी की चंद तस्वीरें- ”मुझे जरा भी अंदेशा नहीं था, कि कभी मेरी इन पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लगेगी और इतनी कामयाबी मिलेगी. मुझे यह सब एक सुहाना सपना-सा लग रहा है.”

 

”कैलाश दीदी, आप सुहाने सपने का आनंद लीजिए, खूबसूरत पेंटिंग्स बनाइए, फिर प्रदर्शनी लगाइए, हम सबको बुलाइए, बहरहाल हम तो कभी कैनवास को देखते हैं, कभी आपकी कृति को देखते हैं, तो कभी आप जैसे खूबसूरत केनवास बनाने वाले कलाकार को देखते हैं. आपने अपनी पेंटिंग्स में ऑस्ट्रेलिया की कला के साथ भारत की कला का जो समन्वय किया है, वह बेजोड़ है, लाजवाब है. आपका कहना सच है-
”मिली है जिंदगी, तो कोई मकसद भी रखिए,
सिर्फ सांसें लेकर,
वक्त गंवाना ही जिंदगी तो नहीं.”

 

चलते-चलते
चलते-चलते हम आपको यह बताते चलें, कि कैलाश दीदी को प्रदर्शनी में उपस्थित सभी महानुभावों के प्रोत्साहन से बहुत भावुक हो गई थीं, लेकिन शकुंतला जी के आकर भावपूर्ण उत्साह बढ़ाने को वह कभी विस्मृत नहीं कर पाएंगी. बुजुर्गियत के चलते शकुंतला जी खुद चलने और सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ हैं, फिर भी बेटे को लेकर अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करा दी थी.

कैलाश दीदी की तस्वीर को देखकर तो आप समझ ही गए होंगे, कि खड़े होकर उनके लिए बड़े कैनवास को संभालना मुश्किल होगा, इसलिए वे छोटे-छोटे कैनवास को ही अपनी कला का माध्यम बनाती हैं.

सही की सही भूमिका की बात करते हुए उनकी आंखें नम हो जाती हैं.

 

प्रेरणा लेने वाली कैलाश भटनागर को और प्रेरणा देने वाली सही को हमारे कोटिशः नमन.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “कैलाश भटनागर: एक सच्ची फ़नकार- 1

  • लीला तिवानी

    कैलाश भटनागर जैसे सक्षम कलाकार बहुत होंगे, पर ऐसे कलाकार से हमारी मुलाकात पहली बार हो पाई है, जिसने 90 साल की उम्र में पेंटिंग करनी शुरु की हो और भारत-ऑस्ट्रेलिया के मिले-जुले ऑर्ट की इतनी नायाब प्रदर्शनी लगाई हो. सच है कला की कोई उम्र नहीं होती, वह कभी भी उभर सकती है. इस उम्र में इतना बारीक काम उनकी नजर और नजरिए का कमाल है. कई बार गिरने से चोट के कारण वे भले ही व्हील चेयर का सहारा ले रही हैं, पर उनका साहस और जज़्बा बरकरार है. दीदी कैलाश भटनागर जी को हमारे कोटिशः नमन.

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