कविता

कोई

इंतजार में गुजार दी रात अकेले
छत पर कम से कम आये कोई

लूट ली पतंग अपनों ने ही यहाँ
मेरी डोर से मांझे लड़ाये कोई

शहर की गलियों में गिर पड़ा बचपन
जाकर माँ की तरहा सहलाये कोई

रिश्तों में तो भाई था मेरा वो
अब बदलकर नजर आये कोई

कब्र में दबा पड़ा हूँ कई रोज़ से
खींचकर हाथ मिरा उठाये कोई

मौत से तल्खी से बात होती है हमेशा
जिंदगी का हुनर अब समझाये कोई

तोड़ा था मकान जिसका कल
टूट चुका है जाकर उसे बताये कोई

हँसता रहता है पूरे दिन पागल-सा
आज अचानक उसे रूलाये कोई

कोसों दूर से खत मिला एक मुझे
अपना हक मुझ पर जताये कोई

समझता नहीं ,मैं जानता हूँ हकीकत
झूठ को सामने लिबास पहनाये कोई

क्या हूँ की बहुत कम लिखता हूँ
इस अनाथ को यहाँ अपनाये कोई

गाँव की चौपाल रहती है खाली
गाँव जाऊँ मैं,फिर शहर आये कोई

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733