कविता

मेरी तन्हाई

मैं जब अपनी तन्हाई के साथ,
अकेला जब भी होता हूँ ,
क्यो तुम चली आती हो ,

मेरी खामोश आंखों में,
क्यो तुम झाँक कर इनमें,
अपनी झील सी आंखों में ,
मुझे डुबोना चाहती हो उनमें ।

मेरी खामोश हुए लब ,
जो कुछ न कहते कभी,
अपने लबों को उन पर टिका,
बोलने को मजबूर करना चाहती हो ।

मेरे दिल धड़कन जो ,
धड़कनी कम हो गई ,
अपने दिल की धड़कन सुना,
उनको बेहिसाब धड़कानां चाहती हो।

मेरे हाथ जो किसी को ,
सहलाना भूल गए ,
अपनी बिखरी जुल्फों को,
सवांरने मुझे देना चाहती हो,

मैं हर वो खुशबू ,
जो तेरा अहसास कराती है,
उसी खुशबू को क्यो ,तुम
करीब आ महसूस करवा रही हो।

मेरा हर वो अहसास ,
जो तुझसे जुड़ा है ,
क्यों तुम यादों के सहारे,
आ कर मेरे पास ,
मुझे अपनी याद दिला रही हो ।

क्यो आती हो तुम ,
बार बार पास मेरे ,
रहने दो मुझे तन्हा ,
मेरी तन्हाई के साथ ।

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।