लघुकथा

ब्लॉक अनब्लॉक

इस कथा का जन्म ‘ध्यान’ के दौरान हुआ

ईश्वर चंद्र जी बहुत बड़े वैज्ञानिक थे । पत्थर, लोहे, को सोना बनाने की कला जानते थे । पत्थर को सोना बना देते सोने को एक क्षण में पत्थर ।  ना  किसी से दोस्ती ना किसी  से बैर । जीवन में किसी चीज की कमी नहीं थी । उनकी दो संतानें हुई, मानवेन्द्र और जीतेन्द्र । जीतेन्द्र ने मन लगाकर पढ़ाई की कुछ दिनों तक अच्छी  नौकरी के बाद, मेहनत करके अपना व्यापार शुरू कियाऔर उसकी ईमानदारी, लगन, के कारण उसे जिंदगी में किसी चीज कि कमी नहीं रही । जबकि मानवेन्द्र ने अपनी आलसी प्रवृति के कारण बचपन से पढ़ाई लिखाई पर कोई ध्यान नहीं दिया । कम पढ़ा लिखा होने, आलसी प्रवृति के कारण वह गरीबी में जीवन बिता रहा था । जीतेन्द्र पिता का बहुत सम्मान करता, जबकि मानवेन्द्र पिता की कोई परवाह नहीं करता था । उसे अपनी सोच के कारण लगता कि पिता जी जीतेन्द्र को अधिक प्यार करते हैं और उसे नहीं । इस कारण वो पिता से नाराज रहता था । उसके पिताजी जब तब उसे फ़ोन करते पर उसने उनका फ़ोन ब्लॉक कर दिया । उसके पिता उससे मिलने की कोशिश करते तो वो कहता मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं ।

वह कुंठित सा रहने लगा उसमें हीन भावना आ गयी । उसे शराब और जुए की लत लग गयी ।  अपनी कुंठा के कारण वह दूसरे शहर चला गया । पैसे ख़त्म होने लगे, शराब के लिए वह भीख तक मांगने लगा । कुछ महीनों बाद वो बीमार हो गया । किसी सामाजिक कार्यकर्ता ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया। कुछ दिन वहां से कुछ ठीक होकर आया तो वही पुरानी समस्याएँ फिर खड़ी हो गयी, भोजन के लिए पैसा कहाँ से आता  । एक दिन उसे भीख मांगते देखकर उसके पिता के दोस्त ने उसे पहचान लिया । वह उसे घर लेकर आये । उस व्यक्ति ने कहा की तू तो इतने बड़े दान दाता, जो की दुनिया को खिला रहे हैं की संतान होकर भी भीख मांग रहे हो । उसने कहा मेरे पिता मुझे नहीं चाहते मेरे भाई को चाहते हैं । उस व्यक्ति ने कहा तू अपने पिता से बात क्यों नहीं करता ? उसने जवाब दिया मुझे पता है वो मुझे दुत्कार देंगें ।

उस व्यक्ति ने कहा यदि मैं तुम्हारे पिता से बात करूँ तो क्या तुम उनसे बात करोगे ? मरता क्या ना करता उसने हामी भर दी । उस व्यक्ति ने उसके पिता को फ़ोन किया पिताजी तो खुशी से झूम उठे । मानवेन्द्र ने पिता जी से पूछा मैं इतने कष्ट में था औरआपने मेरी सुध नहीं ली  । ईश्वर चंद्र जीने कहा बेटा मैं तो सदैव तेरे साथ ही था । मैंने तुझे फ़ोन किया तूने मेरा फ़ोन ब्लॉक कर दिया मिलना चाहा तूने मिलने नहीं दिया । एक बार अपना फ़ोन अनब्लॉक करके तो देखता उसी समय तुझे मेरे मैसेज दिखाई पड़ जाते । तू मुझे एक बार फ़ोन तो करके देखता मुझे अपने पास ही पाता। तू मेरी संतान है मेरा सब कुछ तेरा ही तो है पर तूने मुझे अपना नहीं समझा, तुझमें एक विश्वास की कमी थी ।

तेरे भाई को मैंने मैंने कोई धन दौलत नहीं दी । उसे पता था कि जरूरत पड़ी तो पिताजी तो हैं ही उसने मुझ पर विश्वास रखते हुए ही अपने काम किये । इसी विश्वास के कारण वह एक सफल व्यक्ति बना ।

कोई बात नहीं जब जागो तभी सवेरा । तुझे अपनी  भूल का एहसास हुआ मुझे इस में ख़ुशी है ।मुझ तक पहुँचने के लिए मेरा पता ठिकाना तो तुझे पता था फिर मेरे पास क्यों नहीं आया ? मुझे क्यों नहीं बुलाया, मेरी संतान मुझे बुलाये इससे ज्यादा मेरी ख़ुशी और क्या हो सकती है ? एक बार दिल से मुझे बुला कर तो देखा होता मैं दौड़ा दौड़ा चला आता ।  

मानवेन्द्र पिताजी के गले लगकर खूब रोया और अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांगने लगा ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।