तिमिर उत्सव मनाने आ गया
छा गयी बदली ज़रा सी सूर्य थोड़ा छुप गया
और इतने में तिमिर उत्सव मनाने आ गया
कौन अब कह दे कि उथला कृत्य है ये
कालिमा का अल्पजीवी नृत्य है ये
भ्रम क्षणिक है टूटना ही है इसे तो
झूठ को मिटना पड़ेगा सत्य है ये!
मिट गया हर बार फिर से आज़माने आ गया
है भले खुश आज जतुका आत्मग्राही
झींगुरों से पा रहा तम वाहवाही
कल सुबह फिर सूर्य का उगना अटल है
अनसुनी कर तारकों की भी गवाही
उल्लुओं का झुण्ड देखो घर बनाने आ गया