कविता

फिर सदाबहार काव्यालय-5

सूर्य का प्रभामंडल

हर एक का एक औरा होता है,
जिसे हम प्रभामंडल कहते हैं,
इसी प्रभामंडल में उसके सभी सद्गुण,
निवास करते हैं.

प्रभामंडल खुद कुछ नहीं कहता है,
जो कुछ कहना होता है,
वह प्रभामंडल में दिखता है,
इसलिए तो हम उसे प्रभामंडल कहते हैं.

सूर्य का भी एक प्रभामंडल होता है,
जो अति जाज्ज्वल्यमान होता है,
सूर्य भी कभी कुछ नहीं कहता,
बस उसकी प्रज्वलित रश्मियों के द्वारा,
उसकी सभी विशेषताओं का प्राकट्य होता है.
सूर्य बिना किसी भेदभाव के,
सबको समान रूप से रोशन करता है,
पर इस बात को सूर्य ने कभी नहीं कहा,
जो कुछ कहना होता है,
उसका प्रभामंडल कहता है.

हम ही कहते रहते हैं, आज सूर्य फीका लग रहा है,
असल में सूर्य कभी फीका नहीं होता है,
वह अपने तेज को कभी नहीं खोता है,
वह तो बिन बुलाए बादलों के सामने आने पर,
उनका भी तहेदिल से स्वागत करता है,
अतिथि की तरह बादलों के चले जाने पर,
पुनः अपने तेजोमय स्वरूप में
अवस्थित होता दिखता है.

सूर्य किसी के पीछे भागता नहीं है,
धरा ही उसके चारों ओर
चक्कर लगाती रहती है,
धरा अपना जो भाग उसके सम्मुख ले आती है,
उसी को सूर्य की रोशनी मिलती रहती है.

सूर्य अपने तेज से अनगिनत कीटों को निस्तेज कर,
स्वतः हमें स्वस्थ रखने में सहायक होता है,
पर उसके मन में कभी भी इसका अहंकार नहीं होता है,
वह तो निष्काम भाव से अपने कर्म-रथ पर आरुढ़ रहकर,
गीता के इस सदुपदेश के साकार रूप को संजोता है.

सूर्य अपने निश्छल स्वभाव से
हमें अनुशासन की सीख देता है,
समय पर प्रकट होकर,
समय पर चंद्रमा को तेज देता है,
तारों की टिमटिमाहट में भी
तेज समाहित है उसी का,
अग्नि को भी वही तो वास्तव में सेता है.

बताइए तो भला वृक्ष क्यों सूर्योन्मुख होता है?
वह सूर्य से तेज को पाकर सूर्य को नमन करता है,
यह सूर्य या वृक्ष नहीं,
फलते-फूलते वृक्ष का औरा कहता है.
सूर्य ही सागर से खारा पानी खींचकर बादल बनाता है,
वही फिर बादलों को बरसाकर नदियों को,
मधु-सदृश मीठे जल से आप्लावित करता है.

सूर्य एक छोटे-से छिद्र से भी
हमें अपने मंगल-दर्शन करवा देता है,
ऐसे ही कुछ छिद्रों के प्रकाश से
अजंता-एलोरा की गुफाएं बनी हैं,
यह बात न तो सूर्य ने बखानी है,
न अजंता-एलोरा की गुफाओं की ज़ुबानी है,
ये तो गुफाओं के निर्माण-हेतु
जिज्ञासावश हमारे लगाए हुए कयास हैं,
इनमें भी सूर्य का और
अजंता-एलोरा की गुफाओं का औरा बोलता है.

हरेक की तरह,
सूर्य का भी एक औरा होता है,
जिसे हम प्रभामंडल कहते हैं,
इसी प्रभामंडल से सूर्य की आभा द्वारा,
हम प्रकाशित रहते हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय-5

  • लीला तिवानी

    वास्तव में हर मानव का अपना एक औरा होता है अगर यूं कहें, कि जिसका कोई औरा नहीं होता, उसे मानव कहलाने का अधिकार भी नहीं है. औरा वह चुम्बकीय आकर्षण है जो प्रत्येक मनुष्य को परस्पर एक-दूसरे के गुणों की ओर खींचता है और तभी तो बनता है वसुधैव कुटुम्बकम. यही है भारतीय संस्कृति, जो दूसरों में केवल गुण ही देखना सिखाती है अवगुंण नहीं. सूर्य के प्रभामंडल को निहारना भला किसके बस की बात है? अब भारत में सूर्य-ऊर्जा को प्रयोग में लाने के काम जरा गति पकड़ रहे हैं. कटरा स्टेशन अपनी बिजली खुद बना लेता है और एक ट्रेन का भी उद्घाटन होने को है, जो चलेगी तो डीजल से ही पर कोच इत्यादि की लाइट हेतु सौर ऊर्जा ही प्रयोग में आयेगी, जिसका उत्पादन कोच की छत पर लगे पुर्ज़ों से होगा.

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