गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल-जाओ, मत समझो

मुझको शतप्रतिशत समझो.
या फिर बिलकुल मत समझो.

लाभ मिलेगा रिश्तों से,
पर उनकी क़ीमत समझो.

कोई तुमको चाहे तो,
अच्छी है क़िस्मत समझो.

झूठ अभी तक बोले हो,
सच की भी ताक़त समझो.

धन-दौलत, शोहरत, इज़्ज़त,
तुम अपनी चाहत समझो.

पीना लाख बुरा है पर,
क्यों है लगी ये लत,समझो.

तुम जो बोले, तुम जानो,
वो क्यों बोली-“धत्” समझो.

मोबाइल-युग में उसने,
क्यों भेजा है ख़त, समझो.

मर्द तुम्हें समझेगी वो,
औरत को औरत समझो.

दोष लगाया दोषी ने,
तुम उसकी हरकत समझो. 

जिस घर में हर इक ख़ुश हो,
उस घर को जन्नत समझो.

अब भी जो न समझ पाये,
तो फिर जाओ, मत समझो.

डॉ.कमलेश द्विवेदी
मो. 9415474674