गीतिका/ग़ज़ल

वो मुझे मेरी हद कुछ यूँ बताने लगा

वो मुझे मेरी हद कुछ यूँ बताने लगा
जो डूबा मेरे रंग में, बेहद बताने लगा
इक आँधी चली और नेस्तोनाबूत हो गया
वो दिया जो कल सूरज का कद बताने लगा
जहाँ भी मिले अपनों के सर कटे हुए लाश
अखबार उसी को बारहां सरहद बताने लगा
पहले आँख फोड़ते हैं और फिर चश्मा बेचते हैं
कोई पूछे ये माजरा तो मदद बताने लगा
जिसको भी मौका मिला उसने ही लूटा है
वो रोज़ की जुल्मपरस्ती को अदद बताने लगा
यूँ तो तय नहीं होगा अब मंज़िल का सबब
धूप में चलने वाला हर पेड़ को बरगद बताने लगा
जिसकी उम्र गुज़र गई लंका जैसी नगरी में
मौका मिलते ही खुद को सुग्रीव और अंगद बताने लगा
बेटा ने कमाना शुरू किया और ये हादसा हुआ
बात-बात पर अपने बाप की आमद बताने लगा
— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com