हास्य व्यंग्य

अभिभूतीकरण

घिसई अकसर नेताओं के भाषणों को “आरत के मन रहई न चेतू” टाइप से आब्जर्व करता है और उसी में अपना भाग्य तलाशता है। कभी-कभार मिलने पर जब वह इन भाषणों का जिक्र मुझसे करता है, तो मैं भी इनमें कहाँ-कहाँ पप्पू-गप्पू पन छिपा होता है, इस बात से उसे परिचित कराता हूँ। असल में क्या है कि डरता हूँ, कि आम आदमी से भी गया गुजरा अपना यह घिसई कहीं ऐसे भाषणों से अभिभूत होकर इसके चकरघिन्नी में न फंस जाए..! क्योंकि यह चकरघिन्नी बड़ी रोमांटिक चीज होती है।

उस दिन गरीबों को जागरूक करने में लगे किसी संस्था के एक नेतानुमा पदाधिकारी अपने सामने बैठे घिसई टाइप आदमियों को समझाते हुए बोल रहे थे, “बोलो, योजनाओं की जानकारी लोगे कि नहीं..बोलो..” और हुंकार के उठते समवेत स्वर के साथ ही उन सबसे नारा लगवाते, “जोर से बोलो..भारत माता की जय।” पहले तो “योजनाओं की जानकारी” के साथ “भारत माता की जय” का कनेक्शन मुझे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन इस जयकारे के जस्ट बाद देशभक्ति की भावना में खड़े हुए अपने रोएँ पर मैंने जब ध्यान दिया, तो इस कनेक्शन को समझ पाया। मतलब मैं उन नेता जी की बातों से अभिभूत हो चुका था। तो, ऐसेई होता होगा अभिभूतीकरण और अभिभूतावस्था.!!

घिसई भी कभी-कभी भाषण सुन लेने के बाद ऐसा ही अभिभूत हुआ रहता है, तब उसका भूत उतारना मुश्किल होता है, और समझाने के दौरान मुझसे कह बैठता है, “गुरू..तुहूँ पार्टीबंदी में फंसि गवा ह्यअ..।” इतना कुछ सुन लेने के बाद भी मैं, उससे यह नहीं कह पाता कि बुद्धिजीवियों की बुद्धि दरअसल पार्टीबंदी में पड़ने पर ही खुलती है, और तभी उसकी बुद्धि की गहराई का पता चलता है, क्योंकि वह इस बात को समझेगा नहीं। हालाँकि मेरी पत रखने के लिए वह हाँ-हूँ के अंदाज में मूंड़ी जरूर हिलाता रहता है, खैर।

आज मिलते ही घिसई बोल पड़ा था, “गुरु अब तउ ई सरकार बदलै क पड़ी।” इस बात में उसकी दृढ़ता देख मैं समझ गया कि अपनी अभिभूतावस्था में ही वह ऐसा बोल रहा है, क्योंकि उसकी एकदमै वाली आम-आदमियत उसे इतने दृढ़-निश्चय पर पहुँचा ही नहीं सकती! हाँ, आजादी के इतने वर्षों बाद पैदा हुए बेचारे घिसई जैसों को आज भी निर्णय लेने के लिए अभिभूतीकरण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
तो मैंने अभिभूतीकृत घिसई का भूत अपने आप उतरने तक, इसे आज कुछ भी समझाना व्यर्थ समझा और उससे पूँछा, “ऐसा क्यों!”

छूटते ही घिसई बोला-

“अइसा एहि बदे कि गुरू, ई सरकार हमई लोगन के लिए घपलऊ-घोटालऊ नाहीं करइ देत बा, हमरे बेरोजगारी का तनिकऊ खियाल ई सरकार को नाहीं अहै..आसमानी घोटाला कइके बड़कवन को जरूर फायदा पहुँतावत बा..फिर तउ सरकार बदलै क पड़िबइ करी..!”

उसकी इन तल्ख बातों से मैंने अनुमान लगाया कि जरूर किसी नेता के भाषण से इसका अभिभूतीकरण सम्पन्न हुआ होगा। लेकिन इधर चुनावी-कार्यक्रम सम्पन्न हो जाने से नेताओं के भाषणबाजी की भी संभावना नगण्य थी। लेकिन मैंने सोचा, इस देश के नेता चिर चुनावी-मुद्रा बनाए रखते हैं, जैसे रनवे पर उड़ान भरने के लिए तैयार खड़ा कोई विमान ! हो न हो, ऐसे ही चुनावी-मोड में किसी चिर-ऐक्टीवेटेड पर्सन ने इसे अपनी बातों से अभिभूत कर दिया हो.!!

खैर, मेरा अनुमान सही निकला, दरअसल आज वह एक नेता के लान में घास छिलायी का काम करने गया था और वहीं से वापस आ रहा था। वहीं पर उन नेता जी ने उसे अपनी बातों से अभिभूत कर किया था। उन्होंने उसे समझाया था कि अगर सरकार घपले-घोटाले करने देती तो शहर में खाली पड़े अपने बड़े “पिलाट” में वे “बेल्डिंग” बनवाते और उस निर्माण कार्य में उसे यानी घिसई को कई महीनों का रोजगार दे देते। इसके साथ घिसई ने मुझे यह भी बताया कि “गुरू, ऊ बड़ा दयालू हैं, कह रहे थे, पिछली बार हमने अपने पैसे से वृद्धाश्रम बनवाए जहाँ बूढ़े होने पर तुम भी रह सकते हो और गुरू…ऊ कह रहे थे कि वैकुंठ-धाम को इतना भव्य बनवाया है कि ऊँहा जाने पर बहुत शांति मिलेगी..!” घिसई के ही अनुसार अंत में नेता जी ने उसे यह भी समझाया था, “देख घिसइया, तुझ जैसे लोग किरांतिकारी-एपरोच नहीं रखते हैं, इसीलिए भुगतते हैं, सरकार बदलो और अबकी बार बड़के-चुनाव में मुझे जिताओ, आखिर तुम्हारे जीने-मरने तक का खयाल हमहीं रख सकते हैं, बताओ हमसे बड़कवा धिरारमिक कउन होगा..!”

मुझे ध्यान आ गया, शायद यह वही नेता जी होंगे जिन्होंने अपने द्वारा किए गए कार्यों के उद्घाटन के अवसर पर उपलब्धियों को गिनाते-गिनाते वृद्धाश्रम और वैकुंठ-धाम की सुख-सुविधा और उसकी भव्यता का ऐसे बखान किया था कि जैसे सामने बैठी जनता में, जल्दी-जल्दी वृद्ध होकर वृद्धाश्रम जाने और फिर मरकर वैकुंठ-धाम की सुख-सुविधा भोगने की लालसा जगा रहे हों..!! यह भाषण सुनते हुए उनके ही पी.ए. जी मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।

खैर, मैं समझ गया था कि आज घिसइया का अभिभूतीकरण कस के हुआ है और इसपर से “किरांतिकारी-एपरोच” वाला भूत इतनी आसानी से उतरने वाला नहीं, क्योंकि इसकी अभिभूतावस्था दीर्घकालिक स्वरूप धारण किए हुए है। अपने इन्हीं विचारों के साथ मैंने उसे समझाए बिना अपनी राह पकड़ ली।

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.