कविता

पागल लड़की

वो पागल लड़की है
जो मुझ पर मरती है

बिन बोले आंखों से
वह सब कुछ कहती है
न जाने दिल मेरा
क्यों मुझ से लड़ती है
जो मुझ पर मरती है-२
वो पागल लड़की है
जो मुझ पर मरती है

सपनों में आती है
मेरी नींद चुराती है
वो नींद चुरा करके
दीवाना करती है
जो मुझ पर मरती है-२
वो पागल लड़की है
जो मुझ पर मरती है

दिन-रात ख्यालों में
वो खोई रहती है
छुप-छुप कर लोगों से
वो रोया करती है
जो मुझ पर मरती है-२
वो पागल लड़की है
जो मुझ पर मरती है
©डा.अरुण निषाद

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032