लघुकथा

लघुकथा – संस्कार

”अंकल, बिटिया की शादी का कॉर्ड लाया हूं, आपको आकर बिटिया को आशीर्वाद भी देना है और सारा काम भी संभालना है.” किशोर ने कहा.
”बहुत-बहुत मुबारक हो बेटा, हम तो कब से बिटिया की शादी की प्रतीक्षा कर रहे थे. निश्चिंत रहो, हम अवश्य आएंगे, बिटिया को आशीर्वाद भी देंगे और काम भी संभालेंगे. अरे हां, लड़का अपनी बिरादरी का ही है न!” अंकल की स्वाभाविक उत्सुकता थी.
”अंकल. लड़का अपनी बिरादरी का तो नहीं है, पर बहुत सुशील और समझदार है. बिटिया के साथ पढ़ता था. आपको याद होगा, हमारी प्रेम विवाह भी ऐसे ही हुआ था. मेरी पत्नी भी बिरादरी की नहीं थी, लेकिन परिवार में किसी को उससे कोई शिकायत नहीं है.”
”बिलकुल याद है बेटा. यह भी सच है, कि बहू ने बड़ों की इज़्ज़त में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. वास्तव में बात जात-बिरादरी की नहीं होती है, संस्कारों और आपसी समझ की होती है”.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “लघुकथा – संस्कार

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

    बहुत सुंदर भावभरी रचना. हार्दिक बधाई .

    • लीला तिवानी

      आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको यह रचना सुंदर भावभरी लगी और पसंद आई. रचना को आप जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों का आशीर्वाद मिलना सौभाग्य की बात है. रचना पर समय देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    बात जात-बिरादरी की नहीं होती है, संस्कारों और आपसी समझ की होती है. ऐसी ही अनेक कामयाब शादियों का हम पहले भी विभिन्न रचनाओं में उल्लेख कर चुके हैं.

Comments are closed.