राजनीति

किसानों के दर्द को समझना जरूरी है

भारत कृषि प्रधान देश हैं. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था व भारतीय जीवन की मुख्य धुरी हैं. अभी तक किसानों के दर्द को समझने, खेती-किसानी की समस्याओं का बेहतर समाधान खोजने व इसका सर्वोत्तम इलाज करने का प्रयत्न ही नहीं किया गया है. यह हमारे देश की विडम्बना है कि अभी तक कृषि क्षेत्र में आर्थिक सर्वेक्षण ही सही तरीकों से नहीं हुए हैं. इन सर्वेक्षणों के आधार पर हमारे देश के अर्थशास्त्री कृषि में सुधार के लिए जो सुझाव देते है, उन सुझावों को अमल में लाने की वजह से किसानों की माली हालत और अधिक बिगड़ती जा रही है. देश के अर्थशात्रियों और नौकरशाहों को केबिन संस्कृति से मुक्त होकर किसानों से रूबरू होना होगा तब ही वे किसानों के दर्द को समझ सकेंगे. इन अर्थशात्रियों और नौकरशाहों ने कभी भी किसानों की समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास तक नहीं किया. सरकार किसानों को समृद्ध बनाने के लिए हमेशा नई-नई योजनाएं ले आती है लेकिन उन कल्याणकारी योजनाओं के नतीजों का कभी भी विश्लेषण नहीं किया जाता है. सरकार के पास अर्थशास्त्रियों और आर्थिक पेशेवरों की संख्या लगभग नहीं के बराबर है. सरकार को देश में अर्थशास्त्रियों और आर्थिक, कृषि पेशेवरों की फौज तैयार करनी होगी. सरकार को ऐसे अर्थशास्त्रियों से दूरी बनाकर रखनी होगी जो  ” चिंता की कोई बात नहीं है ” ऐसे वक्तव्य देकर सरकार को ” फील गुड फैक्टर का अहसास ” करवाते रहते हैं.

कृषि उत्पादों पर कम मूल्य और कर्ज का बढ़ता बोझ ही उनकी मुख्य समस्याएं नहीं हैं. दरअसल कृषि के ढांचे में ही कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनका कर्ज माफी जैसे अस्थाई उपायों से समाधान नहीं हो सकता है. कर्जमाफी की घोषणाओं से भी तो किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला नहीं रूका था. पीढ़ी दर पीढ़ी खेती के विभाजित होने से खेतों का आकार घटता जा रहा है. खेतों का आकार छोटा होने से कृषि उत्पादन और फसलों से होने वाली बचत में कमी आ रही है. किसानों की आय में कमी के मुख्य कारण है कृषि लागत में वृद्धि, प्रकृति की मार, कृषि एवं बाजार का संबंध, कृषि बाजार पूरी तरह से बिचौलियों के कब्ज़े में होना, किसानों को अपने उत्पाद का मूल्य कम मिलना, फसल बीमा प्रीमियम का अनावश्यक बोझ, गाँवों में लघु एवं कुटीर उद्योगों और कृषि से सम्बंधित गतिविधियों की कमी. किसानों पर फसल बीमा प्रीमियम का बोझ अनावश्यक इसलिए है क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं की वजह से फसल खराब होने के बाद भी गरीब किसानों को बीमा कंपनी से दावा राशि का भुगतान नहीं मिल पाता है. कृषि और बाजार का संबंध किसानों के पक्ष में न होकर बिचौलियों, व्यापारियों और उपभोक्ता के पक्ष में कार्यपालिका और विधायिका के कारण ही हो रहा हैं. घरेलु कीमतों में और निर्यात में कमी से देश के असली किसान जो की सिर्फ़ कृषि पर ही निर्भर है काफ़ी निराश हो चुके हैं. सरकार कृषि निर्यात पर अकसर प्रतिबंध क्यों लगाती रहती हैं? निर्यात शुल्क के कारण भी कृषि निर्यात का बाजार तैयार नहीं हो पा रहा हैं. सरकार आयात शुल्क बढ़ाने की जगह जानबूझकर कम करती जा रही हैं. आधिकारिक आकलनों में प्रति 30 मिनट में एक किसान आत्महत्या कर रहा है, इसमें छोटे एवं मझोले किसान हैं, जो आर्थिक तंगी की सूरत में अपनी जान गँवा रहे हैं। अगर आत्महत्या के मामलों की सघन जाँच की जाए, तो ऐसे किसानों की संख्या ज्यादा निकलेगी जो मजदूर एवं शोषित वर्ग के हैं एवं जिनका जमीन पर स्वामित्व तो है, लेकिन उनकी जमीन किसी साहूकार एवं बड़े किसान के पास गिरवी रखी है एवं वो बटहार का काम करते है. आत्महत्या करने वाले किसानों में कपास की खेती करने वाले किसानों की संख्या सबसे अधिक हैं. हमारे देश में पिछले 21 वर्षो में लगभग 3 लाख 30 हज़ार किसानों ने कर्ज़ की वसूली के दबाव और आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या की हैं. अभी तक यह समझ में नहीं आया है क़ि फसलों के बंपर उत्पादन के बावजूद किसानों के फसलों की लागत भी घरेलु बाजार में नहीं निकल पा रही है और किसान फसलों को मंडी तक ले जाने की अपेक्षा सड़कों पर फैंक रहे है. सरकार समर्थन मूल्य के नाम पर किसानों को सिर्फ़ और सिर्फ़ बेवकूफ़ बनाती हैं.

हमारे देश में विकास का मूलमंत्र कृषि का विस्तार और विकास ही होना चाहिए. खेती का पेशा स्थायी रूप से लाभकारी हो सकता है, किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सकती है और किसान समृद्ध हो सकते हैं. इसके लिए किसानों की वास्तविक समस्याओं को समझकर उन्हें जड़ से उखाड़ फेकने के प्रयासों की ज़रूरत हैं. जब उद्योग जगत्, क़ोयला, प्राकृतिक गैस, और ऑटोमोबाइल जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में लागत तय करने वाली तमाम प्रक्रिया अपना रहे है, और अपने उत्पादों की मनमानी कीमतें तय कर रहे है, तब भला किसानों को अधिक मूल्य देने से कितना नुकसान होगा? क्याँ राजनीतिक दबाव के कारण सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए सिर्फ़ लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान ही करेगी? अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार को समूचे राष्ट्र के किसानों की मासिक आय के साधन तलाशने के लिए एक समग्र नीति बनानी होगी. सिर्फ़ किसानों की आय बढ़ाने के लिए समग्र नीति बनाकर और लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान कर देने से ही सरकार का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता बल्कि किसानों के उत्थान के लिए बनायी गई योजनाओं का विधायिका और कार्यपालिका द्वारा उचित क्रियान्वयन और समय-समय पर नियंत्रण एवं निगरानी भी अति आवश्यक हैं.

एक ओर सरकार सरकारी कर्मचारियों को कई प्रकार के भत्ते देती है और किसानों को सिर्फ़ न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है जो खेती की लागत से भी कम होता हैं. बढ़ती कृषि लागत एवं कृषि उपज के घटते दामों के बीच भारतीय किसान पिस रहा है.हमारे नीति निर्माताओं को चाहिए क़ि वे किसानों के हक में योजनाएँ बनाएँ और और सरकार यह सुनिश्चित करें क़ि वे योजनाओं का लाभ इन किसानों तक पहुँचाएँ. अब समय आ गया है क़ि सरकार को किसानों के घरों की मासिक आय के साधन तलाशने की अत्यंत आवश्यकता है. ग्रामीण क्षेत्र में स्थित धार्मिक स्थलों को पर्यटन से जोड़कर ग्रामीणों को रोज़गार देकर उन्हें गाँव में ही रोका जा सकता हैं. लाभकारी मूल्य गारंटी, खेतों के नज़दीक समृद्ध बाज़ारों का सृजन, खेतों के नज़दीक ही गोदाम और कोल्ड स्टोरेज की सुविधाएं देकर एवं मासिक आय की सुविधा सुनिश्चित करके सरकार इन किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकती हैं. समन्वित कृषि को बढ़ावा देकर किसानों की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है. जिन क्षेत्रों में पानी की कमी नहीं है वहां खेत की मेड़ों पर इमारती लकड़ी के पेड़ और फलों के वृक्ष लगाने को सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि कृषि का समग्र विकास किया जाए. खेती के साथ-साथ उससे जुड़े घटक जैसे पशुपालन, मुर्गीपालन, डेयरी, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन, बागवानी, जैविक खाद उत्पादन, भंडारण, कोल्डस्टोरेज और फुड प्रोसेसिंग आदि गतिविधियों को आपस में जोड़ा जाए. ग़रीब किसानों के लिए रोज़गार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध कराने की ख़ास ज़रूरत हैं. भंडारण, कोल्डस्टोरेज और फुड प्रोसेसिंग की सुविधा न होने के कारण देश में भारी मात्रा में कृषि वस्तुएँ नष्ट हो जाती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार सृजन का एक रोड मैप तैयार किया जाना चाहिए. जब खेती-किसानी लाभ का सौदा बनेगी तब ही हमारे गाँवों में खुशहाली आ सकती है और गाँवों से शहरों की ओर पलायन रुक सकता हैं. जिस प्रकार से झारखंड राज्य ने किसानों को एक ही जगह पर कृषि से संबंधित पूरी जानकारी देने के लिए `एकल खिड़की सुविधा केंद्र` खोले है उसी प्रकार पूरे देश में कम से कम तहसील स्तर पर ऐसे केंद्र खोलने चाहिए. किसानों को बीज, खाद, कीटनाशक और कृषि उपकरण उचित मूल्य पर और उच्च गुणवत्ता वाले मिले, किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिले एवं साथ ही  सभी सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन समय पर हो और सभी योग्य हितग्राहियों को इन योजनाओं का फ़ायदा मिले.

ग्रामीण युवाओं को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध भौतिक व प्राकृतिक संसाधनों के अनुसार उद्योगों की स्थापना के साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयासों की जरूरत हैं. वर्तमान शिक्षा ने हमारे देश के गाँवों के युवावर्ग को खेतीबाड़ी के कार्यों से दूर करके रख दिया हैं. वर्तमान में हमारे देश में कृषि विद्यालयों की संख्या काफ़ी कम हैं. कृषि के समग्र विकास के अंतर्गत गाँवों में अधिक से अधिक नये कृषि विश्वविद्यालय, नये कृषि विद्यालय खोलने के साथ-साथ गाँवों के युवा लोगों को कौशल विकास, जैविक श्रृंखला विकास में प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबी बनाकर उन्हें देश की मुख्य धारा से जोड़ने से युवाओं का गाँवों से शहरों की ओर पलायन रुक सकता हैं और गाँवों का समग्र विकास हो सकता हैं.

किसानों की समस्या के निदान के लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति या साहस की दरकरार है उस की कमी है. खेती-किसानी की समस्या किसी पार्टी या सरकार की नहीं है बल्कि यह देश की समस्या है. जब भी किसान संघठित होकर आंदोलन करते हैं तब सरकार की ओर से किसानों की समस्या के निदान के लिए एक समिति या एक आयोग का गठन कर दिया जाता है. बाद में उस समिति या आयोग की रिपोर्ट पर न तो चर्चा की जाती है और न ही उनकी सिफारिशों को लागू किया जाता है. क्याँ किसानों की समस्या के निदान के लिए और उन्हें गाँवों में ही रोज़गार प्रदान करने के लिए एक किसान कमीशन का गठन नहीं हो सकता हैं? किसान कमीशन देश के अलग-अलग भागों में नये कृषि विश्वविद्यालय और कृषि महाविद्यालय खोलने हेतु एवं रोज़गारोन्मुखी कार्यक्रम चलाने हेतु अनुशंसा करें, फसलों के उत्पादन के हिसाब से उनके आयात-निर्यात की उचित दिशा निर्देश बनाएं. सरकार को फसलों के उचित दाम, किसानों की आय में वृद्धि, खेती की लागत में कमी और युवा किसानों का गाँवों से पलायन रोकने के लिए अतिशीघ्र एक समग्र नीति बनाने हेतु किसान कमीशन के गठन की घोषणा करनी होगी.

— दीपक गिरकर

स्वतंत्र टिप्पणीकार 

28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड, इंदौर-452016

मोबाइल : 9425067036

मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com

दिनांक : 30.12.2018

दीपक गिरकर

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