गीतिका/ग़ज़ल

एक खबर रहा हूँ मैं…

बन के शहर की एक खबर रहा हूँ मैं।
ऐसा कब हुआ कि बेअसर रहा हूँ मैं।

सांसों का ये कारवाँ चलने को चला है,
एक तेरी दीद की ही आस पर रहा हूँ मैं।

तू तसल्ली से ज़रा तफ्तीश कर लेना,
कुछ ही दिन सही तेरे अंदर रहा हूँ मैं।

थोड़ी रियायत तो मुझसे ठोकरों करना,
मुद्दतों किसी का मुक्कदर रहा हूँ मैं।

आज यकायक चलो मैं खारा हो गया,
माना तो तुमने कि समन्दर रहा हूँ मैं।

मेरी आँखों की नमी न नापना कभी,
लम्बे अरसे बादलों के घर रहा हूँ मैं।

पीठ के पीछे न चलने पाया मैं कभी,
सामने से आये वो खंजर रहा हूँ मैं।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा