कविता

नव युवकों आओ नव युग का निर्माण करें

नव युवकों एक नए युग का चलो निर्माण करें,

जिसमे बस प्यार हो न नफ़रत के बीज उगें |

धर्मों के धागों से ऐसी एक डोर बने ,

अनुपम हो शक्ति पुंज तोड़े से न टूटे |

आतंकी बादल न छाएँ यह यत्न करें,

नेह का सूरज चमके सतरंगी धूप खिले|

रातों की निंदिया न दिन का अब चैन छिने ,

प्यार भरे पल – छिन हों नयनों में स्वप्न पलें|

हरे भरे वृक्षों से यह धरती भर जाए ,

खग कुल का कलरव हो वन्य जीव हर्षाएँ|

सुरभित वातायन हो फिर मलय समीर बहे ,

भारत भूमि फिर से नंदन वन बन जाए |

दरके न यह धरती बाढ़ का न कोप रहे ,

चहुँ दिश हो खुशहाली दुःख कोसों दूर रहे |

सत्यम – शिवम – सुंदरम की बस छाँव रहे ,

एक रहें नेक रहें पावन यह देश रहे |

नफ़रत भुलाके भ्रष्टाचार का विनाश करें,

नव युवकों आओ नव युग का निर्माण करें |

मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

लखनऊ ( यू पी)

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016