कविता

मन का हौसला

जिसके मन में हो हौसला,
डरे ना वह देखकर फासला।
चाहे जितनी दूर हो मंजिल,
कर ही लेता है वह हासिल।

चाहे चंदा न चमके नभ में,
तमस पसरा हो चाहे पथ में।
निडर कभी उससे डरता नहीं,
दुख से कभी आहे भरता नहीं।

चाहे पग में उसके चुभे कांटे,
दर्द फिर भी ना किसी से बांटे।
रक्तरंजित पग है आगे बढ़ाता,
बस निरंतर वह चलता जाता।

हो नैनों में चाहे अश्रु धार,
फिर भी ना वह माने हार।
दम लेता वह पाकर विजय,
हो जाता वह जग में अजय।

विघ्नों को बना लेता मित्र,
ऐसा अद्भुत उसका चरित्र,
प्रभाकर सी मुख पर कांति,
रहती नहीं कोई भूल, भ्रांति।

समय कहे करके प्रणाम,
मानव तू है बड़ा महान,
तेरे ‌आगे समय भी झुकता,
कठिन समय में भी न रूकता।

हार कहे मैं तो हारी,
जाऊं तूझ पर बलिहारी,
देख तुझमें इतनी जीवटता,
आ जाती मुझ में भी दृढ़ता।

देख तुझमें असीम साहस,
प्रेरित हो उठे जनमानस,
निरंतर ऐसे कर्म करता जा,
मनचाहा मंजिल पाता जा।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com