कविता

इंसानियत

तेरा नाम मशहूर है लोगों का दिल बहलाने में ,
कभी फुर्सत मिले तो स्वागत है तेरा मेरे आशियाने में ।

जहाँ मंदीर में आरती और मस्जिद से अजान की आवाजें आती है,
धर्म के नाम पे इंसानो की तलवारे तन जाती है।

मर चुकी है इंशानियत इन जिंदा इंसानों के ,
हो चुका है दामन मटमैला इन हैवानों के।

फिर भी, लोग गर्व महसूस करते हैं ,खुद को धर्म के ठेकेदार बताने में ।

कोशिश करो शायद ये लोग गले मिल जाए इस ज़माने में,
हम भी तुम्हें शिकायत का मौका न देंगे तुमको आजमाने में ।

— मृदुल शरण