बाल कविता

कौआ की काँव काँव

कौआ काला-काला |

खोल लिया इसने अक्ल का ताला ||

काँव-काँव का राग सुनाता | पर कभी न धोखा खाता || कौआ काला-काला | इसका बड़ा बोलबाला ||

छत की मुंडेर पर काँव-काँव बोले |
चुन्नू-मुन्नू के मन में मिश्री घोले ||

प्यारे-प्यारे मामा आयेंगे | चना-रेबडीं लायेंगे ||

खुश हो मुन्नू ने रोटी छत पर उछाली |
कौए न झट उठा कर खाली ||

शाम हो गई पर मामा नहीं आये | चुन्नू-मुन्नू ने मुंह फुलाये || मम्मी ने समझाया -

तुमको काँव-काँव का मतलब समझ न आया ||

कौआ भूख से काँव-काँव चिल्लाया |

नहीं कोई मामा के आने का संदेशा लाया ?

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

ग्राम रिहावली, डाक तारौली,

फतेहाबाद, आगरा, 283111, उ. प्र.

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111