सामाजिक

पतंग,मांझा और प्राण

14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता हैं।विशेषतः ये पर्व सूर्य उपासना और दान,पुण्य के लिए ही माना जाता है।
तदाचित कुछ राज्यों, जैसे गुजरात और महाराष्ट्र में इस दिन पतंगबाजी भी की जाती हैं।सभी प्रातः छत पर एकत्र हो कर पतंगबाजी का आनंद लेते है।
इन राज्यों में सर्दी कम पड़ती हैं, तो सुबह सवेरे से ही पतंगबाजी का मजा ले सकते है।गाने बजाने के साथ पतंग उड़ाने का कार्यक्रम शुरू हो जाता हैं, जो पूरा दिन चलता है।जब तक कि अंधेरा ना पड़ जाये।
बादल लाल,हरी, नीली,पीली पतंगों से ढक जाता हैं और दुल्हन की भांति सजा हुआ प्रतीत होता हैं। हर तरफ खुशहाली छाई रहती हैं।कभी कहि से आवाज सुनाई देती हैं, लपेट तो सब झूम उठते हैं, ये ईशारा होता कि पतंग को काट दिया गया है।
खैर बात करते हैं इस सभी के दौरान जान गवाने वालों की।आज कल प्रतियोगिता और होड़ का युग हैं, सभी एक दूसरे को प्रतिस्पर्धा देने में लगे रहते हैं तो इस मे कोई त्यौहार हो या खेल ।लोगों को अपनी हार मंजूर नही ,उन्हें तो दूसरों को हराना अच्छा लगता हैं।
सो साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति अपनाते हैं और शुरू होता हैं, जानलेवा मंजर।
जीत की होड़ में निर्दोष पंक्षियों की जान भी लेनी पड़े तो किसे परवाह है। हवा में विचरते पंक्षियों को अंदाजा भी नही होता और पल भर में आकाश में उड़ते हुए ये पंक्षी अपनी जान गवा देते हैं।मांझे की डोर इन के पांव को बांध देती है और प्रयत्न करने पर भी खुद को इस बंधन से आजाद नही करा पाते हैं और मौत का शिकार हो जाते हैं।
कल जो आकाश पतंगों से भरा दिखता हैं, सुबह होते होते मंजर बदल जाता हैं और बिजली के तारों में उलझी हुई डोर के साथ कबूतरों को भी जान गवाएं लटकता देखा जा सकता है।
बात सिर्फ पंक्षियों तक थीं, तब तक नजरअंदाज करना चलो इतर कर भी दो।
लेकिन आजकल बाजार में मन लुभावने वाला चायनीज मांझा भी चल गया है, जो तेजी से उड़ती पतंग को काट देता हैं।दो हम बिना इस के नुकसान जाने,चायनीज मांझा खरीद लाते हैं।हालांकि सरकार ने चायनीज मांझा पर प्रतिबंध लगा दिया है और अपना पल्लू झाड़ लिया है।
इस दौरान बाजार में चायनीज मांझा होड़ में सबसे आगे है, ये अपनी धातु मिश्रित होने के गुड़ से पतंग के साथ किसी की जान भी ले सकता हैं।
रोज जैसी छूट पुट घटनाएं अखबारों में छप भी रही हैं कि चायनीज मांझे से युवक की जान गई।
तलवार की धार से भी तीव्र गति से घाव करता है ये मांझा ।मोटरसाइकिल सवार की जान एक झटके से चली जाती हैं।अपने मनोरंजन करें, पर किसी की मौत से ना मनायें जीत का जश्न।
ये एक मनोरंजन का त्यौहार है, खुशियाँ मनाये।
गुड़,गजक खाये और त्यौहार मनाये।पर याद रखें कि गलती से भी आप की वजह से किसी की जान ना जाये।
त्यौहार से खुशियां लाये किसी की मौत नही।।
चायनीज मांझे का प्रयोग नही करें।

संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल sandhyachaturvedi76@gmail.com