लघुकथा

लघुकथा – रिश्तों की भूख?

आज सुमित ने एक अनमोल वचन पढ़ा-
”भूख रिश्तों को भी लगती है,
प्यार कभी परोसकर तो देखिए.”
रिश्तों को भी भूख लगती है? इससे पहले उसने कभी इस पर सोचा नहीं था. आज भी उसने सोचने पर समय लगाना उचित नहीं समझा था और नए साल के स्वागत में व्यस्त हो गया. समय मिलते ही उसे फिर से उस ”भूख” ने व्यस्त कर दिया और डोरी से लटकते हुए बल्ब को देखते हुए वह अतीत की गहराइयों में उतरता चला गया.
इस बार क्रिसमस पार्टी के पार्सल गेम में सुमित को पुरस्कार के रूप में छोटी-सी डायरी मिली थी. सभी पुरस्कार नियत राशि 10 डालर के अंतर्गत ही थे, पर सुमित तो अपने पुरस्कार से बहुत खुश था, डायरी लिखने की आदत उसे बचपन से जो थी. अब नए साल के लिए उसे एक नई डायरी की जरूरत भी थी.
नई डायरी शुरु करने से पहले पुरानी डायरी पर नजर डालना जरूरी था.
बीते साल उसने माइक्रोवेव का इशारा समझा था. उसने साथ देने से इनकार कर दिया था, नया ले आया. तभी उसके सास-ससुर आ गए थे. सुमित ने माइक्रोवेव में चाय बनाई.
”ममी-पापा, नए माइक्रोवेव में सबसे पहली चाय आपके लिए बनी है.” उनके चाय पीते समय सुमित बड़े आदर से बोला.
”तब तो मुंहं दिखाई भी देनी पड़ेगी!” पापा ने भी उतने ही प्यार से कहा. जेब में हाथ डाला, तो दो डालर का सिक्का हाथ में आ गया, वही सुमित को दे दिया. सुमित ने धन्यवाद तो किया, लेकिन डायरी में ”दो डालर” लिखते हुए मुख बिचकाया था. उसके लिए कितने लोगों ने मुख बिचकाया होगा, उसका कोई हिसाब डायरी में नहीं था.
उसने घर का रिनोवेशन और पेंट-पॉलिश करवाया था, नीरज को दिखाया, नीरज ने ”गुड” कहा. सुमित ने ”अनमने मन से गुड” लिखा था. उसने कितने लोगों को ”अनमने मन से गुड” कहा था, उसकी कोई गिनती डायरी में नहीं थी.
सुमित ने दोस्तों के पूरे समूह के साथ सिडनी के हार्बर ब्रिज पर नए साल के स्वागत में आतिशबाजी देखी थी. अगले दिन सबका ”हैप्पी न्यू ईयर” आ गया था, अंकित का संदेश अंकित नहीं हुआ, सुमित का मन कसैला हो गया था, उसके कारण कितने लोगों का मन कसैला हुआ होगा, यह उसकी डायरी में अंकित नहीं था.
बहुत सोचने के बाद सुमित की पेंसिल ने नई डायरी के प्रथम पेज पर लिखा-
”भूख रिश्तों को भी लगती है,
प्यार कभी परोसकर तो देखिए.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “लघुकथा – रिश्तों की भूख?

  • लीला तिवानी

    डायरी में हम वही सब लिखते हैं जो उस वक्त हमारी सोच रहती है. प्रेम से पोषित रिश्ते हमेशा खिलते रहेंगे. हम सिर्फ़ लेना चाहते हैं देना नहीं इसलिए रिश्तों की भूख का अहसास नहीं हो पाता.

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