कविता

पतंगबाजी

नीली , पीली ,हरी , बसंती
और गुलाबी , लाल
तरह तरह की उड़ी पतंगें ,
लगती बड़ी कमाल
चुन्नू ,मुन्नू ,राखी , रेखा ,
शर्मीली ,परकाश
पतंग उड़ाओ सारे मिलकर
छिप जाए आकाश
पेंच से पेंच लड़ाओ ऐसे
दिल से दिल मिल जाए
कटे पतंग की डोर
और धागा प्रेम का कसता जाए
प्रेम की बोली बोलो सब
और मीठा मीठा खाओ
नमस्कार कर सूर्य देव को
यह त्यौहार मनाओ

( मकरसंक्रांति के सुअवसर पर रचित एक रचना )

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।