लघुकथा

आरक्षण

” अरे वीनू काका ! सुना तुमने ! सरकार ने सवर्ण गरीबों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण वाला बिल पास कर दिया है । सरकार ने वाकई बहुत ही सराहनीय कार्य किया है । “

 ” हाँ ! इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है । लेकिन तू इतना खुश क्यों हो रहा है ? “

 ” अरे क्यों नहीं खुश होऊं ? आखिर मैं भी तो सवर्ण गरीब हूँ । इस आरक्षण का फायदा तो मुझे भी मिलेगा न ! “

” बेटा ! किस भुलावे में हो ? नौकरियाँ आठ लाख सालाना कमाने वाले गरीबों द्वारा खरीदे जाने से बची रहेंगी तब न तुम जैसे आठ हजार महिना कमानेवालों तक पहुँचेंगी । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।