कविता

नयनों की भाषा

तुमने चाहा था मैं कुछ सीखूँ
कुछ समझूँ कुछ सोचूँ
पर जब मैंने कुछ सीखा
कुछ समझा कुछ सोचा
तब तक बहुत देर हो चुकी थी,
मेरे जीवन के अनेक फासले तय हो चुके थे
जिन्दगी नये राह पर थी ।
आज जब तुम अचानक मेरे सामने आई
मुझे देखकर धीरे से मुस्काये
थोडी सकुचाई थोडी सी शरमाई
मैंने तुम्हारे नयनो की भाषा को पढ़ लिया
लेकिन तब तक जिन्दगी तो अनेक फैसले ले चुकी थी
अब बहुत देर हो चुकी थी
दोनों के नैनों में बस आँसू थे।
— कालिका प्रसाद सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171