गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बचायें हम मिली जो उस अमानत को कसम खाओ …..
न भूलोगे शहीदों की शहादत को कसम खाओ …

हमारा देश है आज़ाद हम भूलें नहीं बातें …..
चलो अब हम करें इसकी हिफ़ाज़त को कसम खाओ …..

हमारी जनम भू है यह , दिल – जान से प्यारी …..
करें कुछ भी बचाना है मुहब्बत को कसम खाओ

लुटाते जान सरहद पर , उन्हें प्रणाम करते हैं ……
बदल दें हम भ्रष्ट होती सियासत को कसम खाओ …..

रंगीं मौसम हमें मदहोश यहाँ करता हुआ भाता …..
रहें यूँ ही बहारें अब सलामत को कसम खाओ …..

क़दम जो भी रखे दुश्मन , यहाँ की सरज़मीं पर तो …..
भरो सब जोश बाँहों में बगावत को कसम खाओ …..

धर्म के नाम ‘ रश्मि ‘ जो मज़हबी दंगे करें अब तो …..
समझ लो तुम मिटाने की अदावत को कसम खाओ …

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’