लघुकथा

लघुकथा- मैं कहां हूं?

”तुम कहां हो आजादी?” गुलामी की बेड़ियों की जकड़न-सी महसूस करती नारी की आर्त्त पुकार थी.
”लो तुम पूछ रही हो, ”तुम कहां हो?” और मैं खुद से पूछ रही हूं, ”मैं कहां हूं?” आजादी ने कराहते हुए कहा.
”तुम तो स्वतंत्रता हो, तुम अपने को क्यों ढूंढ रही हो?”
”मैं मुक्ति हूं अवश्य, फिर भी बंधनों से जकड़ी हुई. तुम ये बताओ, कि तुम तो वीरांगना लक्ष्मीबाई की जाई हो, तुम्हारी वाणी में आर्त्तनाद किस हेतु?”
”मैंने तो खुद ही अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी है. मैं घर की समस्त जिम्मेदारियों को संभालते हुए भी स्वतंत्र थी. न जाने क्यों मैंने घर की सीमाओं को लांघने का प्रयत्न किया और अब मैं अपनी ही दोहरी-तिहरी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गई हूं. तुम्हारी पीड़ा का कारण जान सकती हूं?” नारी की नारी के प्रति सहानुभूति स्पष्ट थी.
”मुझे तो मेरी संतानों ने ही बेड़ियों में आबद्ध कर दिया. उन्होंने स्वतंत्रता को स्वच्छंदता समझकर मुझे प्रदूषित और उत्पीड़ित कर दिया. ध्वनि-जल-वायु प्रदूषण तो था ही, अब तो सबसे अधिक वाणी प्रदूषण से मैं आतंकित हूं. जिसका जब-जहां मन चाहे कचरा फेंकता है, ध्वनि प्रसारक यंत्रों का प्रयोग करता है, बेशकीमती-दुर्लभ जल का अपव्यय करता है और किसी के मान-सम्मान की परवाह न करते हुए जो मन में आए ऊलजुलूल बोल देता है. अब बोलो तो, अगर हम अपने लिए स्वतंत्रता चाहते हैं, तो दूसरे को भी आजादी देनी होगी न! एक का कर्त्तव्य ही तो दूसरे का अधिकार बन सकता है न! फिर सम्मान पाने के लिए दूसरे को सम्मान भी तो देना ही पड़ेगा न!”
”ठीक कह रही हो. शायद मैं भी इसी असावधानी की अपराधिनी हूं. मैं आजादी के बदलते मायने ही नहीं समझ पाई.”
दोनों तरफ सन्नाटा पसर गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “लघुकथा- मैं कहां हूं?

  • लीला तिवानी

    महिला और भारतमाता दोनों ही स्वतंत्रता के दुरुपयोग से पीड़ित हैं, इसलिए आजादी खुद को ही खोया हुआ महसूस कर रही है. आजादी का अर्थ स्वतंत्रता है, पर बंधन के साथ. बंधन हो अनुशासन का, स्वच्छता का, एक दूसरे के सम्मान का, तभी सभी की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रह सकती है और सभी सुखी हो सकते हैं..

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