गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वह मेरे साथ है ….पर गैरो के मुक़ाबिल है ..
मेरा महबूब भी दुश्मनों की तरह काबिल है ।

जान बूझ कर सताया करता है मुझको
फिर कहता है, मेरे हाल से नही गाफ़िल है ।

उसका दिल दिल है, मेरा दिल खिलौना है
सनम भी देखो ज़रा ऐसा मेरा संग दिल है ।

हवा बड़ा जोर है, पुरजोर है, कठोर भी है
सांस देता है दुनिया को और मेरा कातिल है ।

समेट लिये है अपने पंख परवाज़ से पहले कि
इन पाबंद हवाओं में उड़ान बहुत मुश्किल है ।

सामने प्यास है , साहिल है और समंदर भी
मगर तकदीर .. कुछ भी ना मुझको हासिल है ।।

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)