कहानी

वफादार कौन

आज सेठ रामदास की आंखों की कोरें भीगी हुई थीं। वह चाहकर भी अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रहा था। आंसुओं को रोकने का प्रयास कर रहा था परंतु आंसू है कि रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। बहुत कम लोगों ने सेठ रामदास को कभी रोते हुए देखा होगा। जिन आंखों में कभी आंसू नहीं होते थे, आज वही आंखें भर भर आ रही हैं। उसकी आंखों में आंसू तब होते हैं जब अपने व्यवसाय में कोई घाटा होता है, वरना यह आंखें किसी गरीब के लिए कब रोती हैं?
जिमी को दफनाते समय सेठ रामदास फफक फफक कर रो पड़ा और रोते रोते कहने लगा..” जिमी क्यों छोड़ कर चला गया मुझे। तेरे जाने से मैं बिल्कुल अनाथ हो गया। अब मेरा ध्यान कौन रखेगा। तेरे कारण ही तो मैं आज जिंदा हूं। तेरे कारण ही तो आज मेरी संपत्ति मेरे पास सुरक्षित है।”

जिमी एक बहुत ही सुंदर, स्वास्थ्य और बड़ा ही स्वामी भक्त कुत्ता था रामदास का। जब वह छोटा सा था तब सेठ रामदास शहर से खरीद कर लाया था। बड़े प्यार से उसे पाल पोष कर बड़ा किया था सेठ रामदास ने। भले ही लोगों पर प्यार लुटाए या ना लुटाए परंतु जिमी के लिए उसने ढेर सारा प्यार उड़ेल दिया था। पूरे गांव में सेठ रामदास अपनी कंजूसी के लिए बहुत बदनाम है। गरीब लोगों को चक्रवृद्धि ब्याज पर रुपए उधार देता है और उधर ना चुकाने के एवज में लोगों की जमीन छीन लेता है। गरीब लोग तो डर के मारे कोर्ट कचहरी जाते ही नहीं है या फिर कोई जाता भी है तो वर्षों उलझके रह जाता है कोर्ट कचहरी के चक्कर में। और जमीन सेठ राम दास के नाम हो जाती है। इस तरह से एक गरीब रामदास से आज वह सेठ रामदास बन गया है। आसपास के जितने भी गांव है सब लोग रामदास को राक्षस रामदास करके बुलाया करते हैं क्योंकि लगभग सभी गांव के लोगों को वह लूट चुका है। गरीब भी क्या करते, मजबूर होकर रामदास के पास जाना ही पड़ता है सबको।

रामदास को कहीं से भनक लग गई थी कि कुछ नव युवक मिलकर उसको लूटने की योजना बना रहे हैं। सेठ रामदास डर गया क्योंकि उसका सगा कहने वाला कोई नहीं है आसपास के गांव में, और संपत्ति उसके पास बहुत है।
जब से सेठ रामदास को लूटने की बात पता चली तो रात को वह सो नहीं पाता। उसकी आंखों से नींद ही उड़ गई है। पहले जिमी सांकल में बंधा हुआ रहता था, पर.. अब वह जिमी को रात में खोल कर रखता है ताकि कोई आए तो जिमी भौंक कर उसे जगा दे और दुश्मनों पर हमला बोल दे।

आधी रात के बाद दुश्मन गेट का ताला तोड़कर जैसे ही अंदर घुसे जिमी ने भौंकना शुरू कर दिया। जिमी की आवाज सुनकर सेठ रामदास तथा सारा परिवार जाग गया। उस दिन रामदास का 20 वर्षीय बेटा दीपक भी घर में ही था। वह अपनी छुट्टियां मनाने घर आया था। सब लोग घर से बाहर आ गए। जिमी जैसे ही भोंकते हुए दुश्मनों की तरफ भागा, एक ने उधर से गोली चला दी, जिससे जिमी घायल होकर वहीं गिर पड़ा। इधर सेट रामदास ने भी अपने रिवाल्वर से गोली चलाई। गोली दुश्मनों को लगी तो नहीं पर डर के सब भाग गए।
सेठ रामदास तथा उसके बेटे दीपक, जिमी को उठाकर घर के अंदर ले आए। उसकी सांसे तब भी चल रही थी, पर.. खून बहुत बह गया था। उन लोगों ने घरेलू इलाज करना शुरू किया, परंतु.. जिमी को बचा नहीं पाए।

भागकर गांव के सारे लड़के एक घर में इकट्ठा हो गए। सारे लड़के एक दूसरे से तर्क वितर्क भी लगे हुए थे। एक ने कहा..” अरे, साले सेठ रामदास के पास रिवाल्वर है हमें तो पता ही नहीं था। हमने तो सोचा था जाकर उसे बंदूक के नोक पर डरा धमकाकर सबकी जमीन के कागजात वापस ले लेंगे ताकि सबको जमीन वापस मिल जाए। पर..वो तो हमसे भी एक कदम आगे निकला।”
दूसरे लड़के ने कहा..” हम ही बेवकूफ हैं, जो उसे इतना कमतर आंका। इतनी संपत्ति रखता है तो रिवाल्वर या बंदूक तो रखेगा ही, यह हमें पहले सोचना था।”
तीसरा लड़का, जो पड़ोस के गांव का है, उसने कहा..” ये तो अच्छा हुआ हम मुंह ढककर गए थे। साला अगर हमें पहचान लेता तो थाने में जाकर हमारा नाम कह देता और आज तो उसका बेटा भी साथ में ही था। हो जाते कुछ महीनों के लिए अंदर हम, बच गए आज हम।”
चौथे ने कहा,..” पर इस हादसे के बाद कुछ ना कुछ शिक्षा अवश्य मिलेगी हरामखोर को। हराम की खाने की बहुत आदत पड़ गई है उसकी। अच्छा हुआ उसका कुत्ता मर गया। इस दुख से शायद थोड़ा सुधर जाए, अपनी सूदखोरी और लोगों को लूटना बंद कर दे।”

पूरा एक हफ्ता बीत गया पर.. अभी तक सेठ रामदास के घर मातम का माहौल था! काम धंधा बिल्कुल बंद था। ना कोई आ रहा था ना कोई जा रहा था। इस हादसे की बात आस-पास के गांव गांव में फैल चुकी थी। कोई हिम्मत भी नहीं कर कर रहा था कि उसके घर जाए। पुलिस आई थी, पर.. पुलिस को अधिक कुछ सूचना नहीं दे पाया सेठ रामदास। बस इतना कह पाया कि कुछ लड़के आए थे हमें लूटने के इरादे से, उनके पास बंदूक भी थी। पर हमारे जिमी ने अपनी जान देकर हमें बचा लिया। और वह लड़के कौन थे यह हम नहीं बता पाएंगे क्योंकि सबका मुंह कपड़े से ढका हुआ था,और रात के अंधेरे में ज्यादा कुछ दिखाई भी नहीं दिया हमें।

एक दिन किसी गांव का एक बहुत करीब और बूढ़ा आदमी सेठ राम दास के घर आया और हाथ जोड़कर बिलखने लगा..” बचा लीजिए सेठ साहब, कुछ रुपए उधार दे दीजिए नहीं तो हम सब भूखे मर जाएंगे! बदले में हमारी थोड़ी सी जमीन है उसे गिरवी रख लीजिए। हमारी बीवी बीमार है उसके इलाज के लिए तथा खाने पीने के लिए थोड़े से रुपए चाहिए।”
“सब लोग ऐसे ही कह कर हम से रुपए ले जाते हैं उधार, और चुका नहीं पाते। बदले में हम जमीन ले लेते हैं तो हमें हरामखोर, सूदखोर, बेईमान, राक्षस पता नहीं क्या-क्या नाम दिया है लोगों ने। हमारे जिमी की मौत से हमें बहुत दुख हुआ। वह हमारा बहुत वफादार कुत्ता था। हमारा नौकर तो हमें मझंधार में छोड़कर भाग गया, पर.. उस बेचारे ने हमारी जान बचाते हुए अपनी जान दे दी। हमें इस हादसे से बहुत कुछ सीखने को मिला है। अब हम किसी को पैसे उधार भी नहीं देंगे और किसी की जमीन भी नहीं लेंगे। सब की जमीन वापस कर देंगे। हमारी जान बच गई, भगवान का लाख-लाख धन्यवाद!”
“पर सेठ साहब हम पर दया करो! अगर हमें रुपए ना मिले तो हमारी बीवी मर जाएगी!”
“यह लो तुम कुछ रुपए रख लो। उधार नहीं, मैं ऐसे ही दे रहा हूं, वापस करने की जरूरत नहीं है। जाकर अपनी बीवी का इलाज करो।”.. सेठ रामदास ने तिजोरी से कुछ रुपए निकाल कर देते हुए कहा।
रूपये देखकर उस बूढ़े आदमी की आंखों में चमक आ गई। उसने खुश होते हुए कहा..” भगवान आपको लंबी उमर दे। आपके बीवी बच्चों को खुश रखे।”
गांव में चारों ओर खबर फैल गई कि सेठ रामदास बदल गया है। वह अब जमीन गिरवी नहीं रखेगा और ना ही किसी की जमीन हड़पेगा। जिन लोगों की जमीन उसके पास गिरवी है, सब की जमीन भी वापस कर देगा। आस-पास के गांवों में भी यह खबर फैलते ही चारों और खुशी की लहर दौड़ गई…!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com