उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग – 21)

 

गोपाल वहीं खड़ा साधना को तब तक देखता रहा जब तक वह कॉलेज की ईमारत में घुस कर उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई । जमनादास ने उसके सर पर हलकी चपत लगाते हुए बोला ,” अबे ! क्या देख रहा है ?गई वो ! चल ! नहीं तो मैडम पंडित मुर्गा बना देंगी । पता है न ? वह किसी की नहीं सुनती । ”
” अरे यार जमना ! अब मुर्गा बनने की फ़िक्र किसे है जब वो लड़की तुम्हारे सामने ही हमें मुर्गा बना गई ? अच्छा ! ये तो बता क्या मैंने कुछ गलत कह दिया था ? उसका हालचाल ही तो पूछा था । और ये हालचाल पूछना भी गुनाह है क्या ? अजीब है ये लड़की भी ! ” कहते हुए गोपाल ने कदम कॉलेज की ईमारत की तरफ बढ़ा दिए । जमनादास ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया था ।
वक्त बीतता रहा । उस दिन के बाद गोपाल वाकई कभी भी साधना के रास्ते में नहीं आया और न ही उससे बात करने का प्रयास किया था ।
दीवाली की छुट्टियों के बाद दूसरे सत्र की पढ़ाई शुरू हो गई थी ।
गोपाल कार ड्राइव करते हुए कॉलेज के प्रवेश द्वार से बाहर निकला । सड़क के किनारे दुकानों की श्रंखला शुरू हो गई थी । एक चूड़ियों की दुकान के सामने कई ग्रामीण महिलाओं के बीच खड़ी साधना उसे दिख गई थी ।
न चाहते हुए भी गोपाल का दायां पैर एक्सीलेटर से हटकर ब्रेक के पैडल पर कस गया । कार एक झटके से रुक गई । कार रुकते ही जमनादास ने सवालिया निगाहों से गोपाल की तरफ देखा ,” अबे क्या हुआ ? ब्रेक क्यों लगाया ? ” दरअसल वह घबरा गया था गोपाल के अचानक ब्रेक मारने से ।
गोपाल ने शांति से कार बाएं घुमाते हुए उसे बाएं देखने का ईशारा किया । वह खुद भी एकटक उधर ही देख रहा था । उसकी नज़रों का पीछा करते हुए जमनादास की नजर भी साधना पर पड़ गई । आसमानी रंग के सूट में साधना का गोरा रंग और निखर आया था । लंबे घने काले बादलों के बीच उसका गोरा मुखड़ा यूँ दमक रहा था जैसे अभी अभी चाँद बादलों की ओट से बाहर आया हो ।
” ओह ! तो ये बात है ! ” कहते हुए जमनादास मुस्कुराया था ,” अरे बेटा गोपाल ! काहें उस चीज के पीछे पड़े हो यार जो तुमको कभी नाहीं मिलने वाली । ” उसने मजाकिया लहजे में गोपाल की खिल्ली उड़ाई थी ,” बेटा ! देखन को देख ल्यो …..पावन को नाहीं …..”
” जमना ! ये तो मैं भी जानता हूँ यार ! लेकिन इस कम्बख्त दिल को कौन समझाए ? यह तो उसको देखते ही जोर जोर से धड़कने लगता है । उसी के नगमे गाने लगता है । और तो और अब तो रातों में वह मेरे तन्हाई की साथी भी बन गई है । और जब नींद आ जाती है तो सपने में भी वही दस्तक देती है । लेकिन इन मोहतरमा को तो हम पर जरा भी तरस नहीं आता । मोहब्बत तो है नहीं उलटे लगता है नफ़रत हो गई है हमसे । तू एक मिनट रुक ! आज मैं आखरी बार उससे पूछ ही लेता हूँ । क्या है उसके मन में और फिर ……” कहते हुए गोपाल ने पुनः साधना की तरफ देखा था जो दुकानदार से कुछ और चूड़ियां दिखाने का आग्रह कर रही थी ।
साधना की तरफ देखते हुए ही गोपाल और जमना आपस में बातें कर रहे थे । जमना अब भी गोपाल को साधना के सपने देखना छोड़ देने की सलाह दे रहा था और उसको समझा रहा था लेकिन गोपाल अपनी ही बात पर अड़ा हुआ था कि एक बार और कोशिश करेंगे साधना से अपने दिल की बात कहने का चाहे जो नतीजा हो …
उनके बातचीत के बीच ही ग्रामीण महिलाओं के साथ आये ग्रामीण भी उनकी तरफ देख रहे थे । हालाँकि वो जमनादास और गोपाल की बातें नहीं सुन पा रहे थे लेकिन गोपाल का साधना की तरफ ईशारा उनको सख्त नागवार गुजर रहा था । उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे दोनों ग्रामीण महिलाओं की तरफ देखकर कुछ इशारे कर रहे हैं और उन्हें छेड़ने की कोशिश कर रहे हैं । उनमें से एक बलिष्ठ युवा उनकी तरफ बढ़ा ,” ओये बाबू ! हम गरीबों की भी इज्जत होवे है …कब से देख रहे हैं हमरी जनाना की तरफ देख देख के तुम दोनों आपस में का बतिया रहे हो बे ? ”
एक देहाती की इतनी जुर्रत भला ये रईसजादे कैसे बरदाश्त कर लेते ?
गोपाल भी मजबूत जिस्म का स्वामी था । वह भी गरजा ,” अबे ओये पिद्दी के ! औकात में रहकर बात कर ! तू जानता है किससे बात कर रहा है ?”
” हमको जाने का कउनो शौक नाहीं बाबू ! लेकिन तुमरे जैसन बदमाशन के ठीक करे का हमें बहुत शौक है । ” कहते हुए वह कुर्ते की आस्तीन चढ़ाते हुए उनकी तरफ बढ़ ही रहा था कि उसकी आवाज सुनकर एक ग्रामीण महिला दौड़ते हुए उस युवक की तरफ आई और उसे पकड़कर अपनी तरफ खींचते हुए बोली ,” अब फिर आप मारामारी पर उतर आये आप ? हम आपको कसम न दिलाये थे की आप अब मारामारी नाहीं करेंगे कउनो मनई से ? लेकिन तुमरा का है ? कसम का भी कउनो खियाल नाहीं है तुमरे मन में ..”
उसे झिडकते हुए उस युवक ने कहा ,” तू दूर हो जा धनिया ! हम सब बरदाश्त कर लूंगा लेकिन कोई तेरे को छेड़े हम कभी बरदाश्त नाहीं करूँगा । दूर हट जा तू धनिया ! आज इनकी रईसी की हेकड़ी सब हम निकाल दूंगा । ”
अब सड़क से गुजरने वाली भीड़ भी तमाशबीन बनकर खड़ी हो गई । भीड़ में से एक युवक चिल्लाया ,” मारो सालों को ! कॉलेज में पढ़ने आते हैं कि लड़की छेड़ने आते हैं । ”
तभी धनिया चिल्लाई ,” अरे आपको कउनो गलतफहमी हुई है । इ बाबू लोग तो शरीफ दिख रहे हैं । ई लोग भला हमें काहें छेड़ेंगे ? ”
लेकिन तभी उस युवक के उकसावे पर भीड़ में से कुछ लोग गोपाल पर टूट पड़े । शोरगुल और भीड़ देखकर मामले को दूर से ही देखकर कुछ समझने का प्रयास कर रही साधना गोपाल को मार खाते देखकर उसकी तरफ दौड़ पड़ी । भीड़ के बीच घुस कर वह गोपाल की ढाल बन गई । एक बेहद खूबसूरत लड़की को उसका बचाव करते देख लोगों के हाथ जहाँ के तहाँ रुक गए । वही युवक जिसने उकसाया था बोला ,” मैडम ! ये बदमाशी करेंगे तो यही नतीजा होगा । लड़की छेड़ना अच्छी बात है क्या ? ”
तभी धनिया आगे बढ़कर बोली “नाहीं मेमसाब ! ई लोग कुछउ नाहीं किये । हम उ दुकान में खड़े थे और ई लोगन यहीं खड़े थे । दुकान की तरफ देख रहे थे । इसमें का गलत है ? ”
” तुम सही कह रही हो धनिया ! ये लोग हमारे साथी हैं । और हम दुकान में कुछ खरीद रहे थे इसलिए यहाँ रुक गए थे । ” साधना के कहते ही भीड़ तीतर बीतर हो गई ।
धनिया उस ग्रामीण युवक का हाथ पकड़कर उसे लगभग खींचते हुए लेकर दूसरी तरफ जाने लगी ।
अब साधना ने गोपाल की तरफ देखा । कुछ ही पलों में भीड़ ने उसका कचूमर निकाल लिया था । चेहरे पर कई जगह चोट के निशान आ गए थे । जमनादास ने उसे सहारा देकर उठाया था और कार की पिछली सीट पर बैठा दिया । उसको ध्यान से देखते हुए वह बोली ,” क्यों रुके थे मुझे देखकर ? आखिर क्या चाहते हो ? ”
कहते हुए वह अपने हाथ में पकड़े रुमाल से उसके चेहरे पर उभर आये जख्मों को सहलाने लगी ।
गोपाल की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई हो । मुस्कुराते हुए उसकी आँखों में झांकते हुए मुस्कुराया ” क्या चाहता हूँ यह क्या तुम नहीं जानती ? ”
” ऐसी चाहत क्यों रखते हो जो कभी पूरी न हो सके गोपाल बाबू ? ” साधना की लरजती हुई आवाज निकली थी ।
” क्यों पूरी नहीं हो सकती साधना ? क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं ?”
” नहीं ! तुम तो हर तरह से लायक हो गोपाल बाबू ! कोई भी लड़की तुमसे शादी करके खुद को भाग्यवान समझ सकती है ! ”
” तो फिर क्या वजह है साधना ? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं ? ”
” ऐसी बात नहीं है गोपाल बाबू ! लेकिन हमारे बीच समाज की अमीरी गरीबी ऊंच नीच की खाई है जिसे पाटना हमारे लिए आसान नहीं है । ”
” मैं तुम्हारे लिए बड़ी से बड़ी खाई को पाट दूंगा साधना ! समाज के किसी भी ठेकेदार से टकरा जाऊँगा और उससे तुम्हें अपने लिए मांग लूंगा । ” गोपाल ने मानो उसे यकीं दिलाना चाहा था ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।