लघुकथा

भय

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी । अमर हॉरर कहानियाँ पढ़ते पढ़ते ही अपने कमरे में सो गया था । हमेशा की तरह बिजली गुल थी । अमावस की रात पूरे शबाब पर थी । अँधेरे का साम्राज्य पसरा हुआ था । हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहे थे ।  अचानक तेज हवा चली । खिड़की के पट खुल गए और खिड़की पर लगे परदे उड़ने लगे । हवा की तेज सरसराहट से अमर की नींद खुल गई । उसने उठकर खिड़की से लहराते हुए परदे को सही करते हुए बाहर झाँककर देखा । बाहर मौसम एकदम शांत लग रहा था । फिर ये अचानक इतनी तेज हवा कहाँ से आई ? सोचकर उसके तन में सिहरन पैदा हो गई । खिड़की से बाहर नजर आनेवाले बगीचे में छोटे छोटे पेड़ पौधे अँधेरे में डूबे हुए किसी विचित्र सी आकृति का अहसास दिला रहे थे । अमरीकी की सिहरन बढ़ गई । घबराहट की अधिकता से खिड़की बंद कर वह एक झटके से पलटा और सोने के लिए अपने बेड की तरफ बढ़ ही रहा था कि उसकी नजर सामने लोहे की अलमारी के ऊपर पड़ी । अलमारी के ऊपर से एक जोड़ी दहकती हुई आँखें मानो उसे ही घूर रही थीं । उसकी घिग्घी बँध गई । पैर बेजान से हो गए और दोनों  हाथ स्वतः ही जुड़ते गए । मुँह से हनुमान चालीसा का जाप अपनेआप शुरू हो गया ….जय हनुमान ज्ञान गुण सागर …….हाथ जोड़े जाप करते हुए उसकी आंखें बंद हो चुकी थीं । धडकनों ने अपनी गति बहुत तेज कर दी थी । शरीर के सारे मसामों ने एक साथ पसीना छोड़ दिया। अचानक उसे ऐसा लगा जैसे उसके सीने में बहुत तेज दर्द उभरा हो । एक हाथ से अपने सीने को मसलते हुए अमर बेड की तरफ जाकर उस तरफ से बाहर जानेवाले दरवाजे से कमरे से बाहर हो जाना चाहता था कि तभी छनाक से पूरा कमरा रोशन हो उठा । अचानक बिजली आ गई थी । उसकी नजर अलमारी के ऊपर गई जहाँ एक बड़ी सी गुड़िया रखी हुई थी ।  यह गुड़िया उसने अपने बॉस की बेटी को जन्मदिवस का उपहार देने के लिये शाम को ही खरीदा था और अलमारी पर रखकर भूल गया था।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।