कविता

मिली हमें आजादी लेकिन ….

भाई से भाई लड़ता हो ,
दिलों में जब तक दूरी है
मिली हमें आजादी लेकिन
        अभी कहाँ वो पूरी है
आन बान और शान है रुपया
लेकिन सबके पास नहीं
किसी की आमद अच्छी खासी
किसी किसी की खास नहीं
 किसी की चिंता कहाँ रखूँ मैं
 किसी की तो मजबूरी है
मिली हमें आजादी लेकिन
अभी कहाँ वो पूरी है
देख के बेटी दूजों की
बूढ़े भी लार चुआते हैं
फिर निज बेटी देख के वो
कैसे मन में हर्षाते हैं
ऐसे दुष्ट हैं जब तक जग में
नारी का सम्मान कहाँ
नारी को बँधन में रखने
से बढ़कर अपमान कहाँ
बेटी बचे और पढ़े लिखे
की चाहत अभी अधूरी है
मिली हमें आजादी लेकिन
अभी कहाँ वो पूरी है
किसी के सिर पर छत ना है
तो किसी के तन पर ना कपड़े
यही हुआ है यही रहेगा
जब तक हैं पिछड़े अगड़े
जाति पाँति का खेल चरम पर
धर्म तो मीठी छूरी है
मिली हमें आजादी लेकिन
अभी कहाँ वो पूरी है
सर्दी गर्मी नहीं देखता
तन से स्वेद बहाता है
भूखे रहकर भी वह इंसां
अन्नदाता कहलाता है
जो दूसरों के नीड बनाता
खुद बेघर ही रहता है
करके मेहनत कड़ी शीश पर
छत धनिकों के रखता है
अच्छे भोजन ,वस्त्र स्वास्थ्य की
हरदम इनसे दूरी है
मिली हमें आजादी लेकिन
अभी कहाँ वो पूरी है

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।