ग़ज़ल
कहीं हिन्दुओं का, कहीं बसेरा मुसलमानों का। मैं तो समझा था यारब, ये शहर है इन्सानों का। कभी चहकती थी
Read Moreस्वप्न में भी तू न रोना तू शहीद की है मां हौसला सबका बढ़ाना तू शहीद की है मां न
Read Moreराजनीतिक स्वार्थ में पड़कर क्यों बोला ये आवेश में कि बिहारी को नहीं रहने देंगे भारत के कई प्रदेश में
Read Moreनेताओं से आजादी बाकी है मेरे भाई नेताजी कह रहे हैं- तू हिन्दू, तू मुस्लिम, तू सिख, तू ईसाई तो
Read More”तुम इतनी ऐक्टिव कैसे रह पाती हो?” तन्वी ने पूछा. ”समय की डोर थामकर चलना मैंने मां से सीखा है.”
Read More70 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर विकलांग बल द्वारा सादगी से उच्च कार्यक्रम किया गया। ● बच्चूसिंह सेवा समिति
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