गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल -१

शेरनी भी पीछे हट गयी
बछड़े की मां जब डट गयी

हमारी कलम वो खरीद न सके
लेकिन स्याही उनसे पट गयी

हमारे मुंह खोलने से पहले
दांतों से जीभ ही कट गयी

सच बोलने लगा है अब वो
समझो उमर उसकी घट गयी

गौर से देखो मेरे माथे को
बदनसीबी कैसे सट गयी

कमीज तो सिला ली हमने
लेकिन अब पतलून फट गयी

उसने गले से लगाया ही था
कमबख़्त नींद ही उचट गयी

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com