गज़ल
मुश्किलें लाख हों उम्मीद कहां मरती है
ये वो शमा है जो तूफानों में भी जलती है
ये बात सच है चाहे मानो या न मानो तुम
जहां दवा न करे, दुआ असर करती है
चीर देती है फिर वो आसमां का सीना भी
किसी गरीब के दिल से जो आह निकलती है
हमेशा दो कदम आगे ही रहती है मुझसे
मेरी किस्मत न जाने कितना तेज चलती है
बचाओ कितना भी मगर ये होता है अक्सर
कि ज़ख्म हो जहां वहीं पे चोट लगती है
— भरत मल्होत्रा