मर्द
रात को एक बजे वो लड़की का हाथ पकड़े जोर से घर मे दाखिल होता है । माँ जो कि बेटी और पति का इंतजार कर रही है वो आश्चर्य से कभी बेटी को तो कभी पति के देख रही है । बेटी रोये जा रही है ।
” देख तू इस कुतिया को भरे बाजार में खुद को बेच रही है “।
” ये सब तेरा ही सिखाया हुआ है तू भी ………. साली …….।”
“बस …………बस कर! तू … खुद को मर्द कहता है ,आदमी है न मेरा तो कमाता क्यों नही ? ये बिक रही थी तो तु वहाँ क्यों गया बेटी समान लड़की को खरीदने ? सुन , ये उसी दिन तेरे कारण बिक गई थी जब तुने इसको तेरे लिए दारू लेन भेज दिया ठेके पर …….
ये लाई भी थी एक हाथ में दारू ,एक हाथ में कुछ रुपये , बदहाल सी ……………..।।”
— सारिका औदिच्य