लघुकथा

मेरी मां

अभी-अभी पत्रकार विजयी चित्रकार मोहित का साक्षात्कार लेकर गए थे. मोहित की माताजी फूली नहीं समा रही थीं. रह-रहकर उन्हें राष्ट्रीय चित्रकला प्रतियोगिता का परिणाम घोषित होने का मोहक समां याद आ रहा था.
”आज की चित्रकला प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार जाता है- ” उत्सुकता जगाए रखने के लिए उद्घोषक बोलते-बोलते तनिक रुक गए थे. मोहित के अतिरिक्त सभी प्रतिभागियों की गर्दनें उचक रही थीं. सबने चित्र बनाने में अपना सारा हुनर जो झोंक दिया था!
”और आज की चित्र प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार जाता है- मोहित कुमार को.” अबके सभी प्रतिभागियों की गर्दनें नीची हो गई थीं और वे कनखियों से देख रहे थे मोहित को, मोहित की नजरें अब भी विनम्रता से झुकी हुई थीं.
”मोहित के हुनर ने सभी निर्णायकों को मोहित कर दिया है,” उद्घोषणा अभी जारी थी. ”आपको जानकर अत्यंत आश्चर्य होगा, कि प्रथम पुरस्कार विजेता मोहित कुमार सिर्फ दायें हाथ के साथ ही पैदा हुए थे. उसी एक हाथ ने यह कमाल कर दिखाया है. कृपया मोहित कुमार और उनकी माताजी को मंच पर लाया जाए.”
दो सुसज्जित बालाएं मोहित कुमार और उनकी माताजी को सत्कारपूर्वक मंच पर ले जाने के लिए आई थीं. उद्घोषणा अभी भी चल रही थी- ”निर्णायकों ने मोहित को प्रतियोगिता में प्रतिभागिता करने के लिए बहुत मना किया था, ताकि पुरस्कार न मिलने पर वह हताश न हो, पर मोहित का जवाब था-
”हताशा की चिनगारी क्या जलाएगी हमको,
अंगारों ने ही तो हमको हौसले के झूले में झुलाया है.”
सचमुच आज हताशा की पराजय हुई है, उसके हुनर की जीत हुई है. इसी हुनर को यह ट्रॉफी प्रदान की जा रही है.”
”मेरे हुनर की हकदार मेरी मां है, जिन्होंने खुद हौसला रखते हुए, मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है. इसलिए यह ट्रॉफी मेरी मां को दी जाए.”
तालियों की गड़गड़ाहट अभी भी उनके कानों में गूंज रही थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “मेरी मां

  • अंजु गुप्ता

    अति सुन्दर 😊

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी अंजू गुप्ता जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको लघुकथा बेहद सुन्दर लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    जन्मजात प्रतिभा अवश्य अपना रंग दिखाती है. विशेषकर दिव्यांगों की तो छठी इंद्रिय इतनी प्रबल होती है, कि वे किसी-न-किसी प्रतिभा के धनी होते हैं और सबके मनोभावों को भलीभांति समझते हैं. वे विनम्रता और साहस से भी सराबोर होते हैं. किसी का संग-साथ उनकी प्रतिभा को निखारे, तो वे मन-ही-मन उसके शुक्रगुजार होते हैं और अपनी सफलता का सारा श्रेय उसे ही देते हैं, फिर मां तो मां ही होती है.

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