लघुकथा

हुनर

नितिन बारहवीं कक्षा के बोर्ड की परीक्षा के लिए बिलकुल तैयार था. उसकी परीक्षा की तैयारी भी चकाचक चल चल रही थी और वायोलिन की सुरीली धुनें भी अपना जादू बिखेर रही थीं. एक कलाकार सब काम अनुशासनपूर्वक करते हुए भी अपने आज में ही मस्त रहता है, नितिन भी ऐसा ही कर रहा था, लेकिन नाम सदानंद राव होते हुए भी नितिन के पापा के दिन-रात आनंद से बहुत दूर तनाव में बीत रहे थे.
सदानंद के सामने ढेर सारी खबरें थीं और उन खबरों का विश्लेषण करने का अपना परिप्रेक्ष्य-
”INDW vs NZW: मिताली राज ने रचा इतिहास, बनीं 200 वनडे खेलने वाली पहली महिला क्रिकेटर”
क्रिकेटर बनना भी आजीविका और प्रसिद्धि का एक अच्छा साधन है! वे सोचते.
”अब कैंसर का हो सकेगा 100 फीसदी इलाज, इजरायली कंपनी का दावा”
यही तो है साइंस लेने का एक लाभ. रिसर्च में लगे रहो और फिर जो लाभकारी परिणाम निकलता है, वह आत्म संतुष्टि के साथ-साथ समाज की सेवा भी. बिना रिसर्च के उनका निष्कर्ष निकलता.
”रजनीकांत की लगातार 3 फिल्‍मों ने कमाए 100 करोड़, ऐसा करने वाले वह पहले तमिल ऐक्‍टर”
वाह क्या बात है! यह भी अच्छी हैटट्रिक रही. एक कलाकार भी इतनी ऊंचाई तक! वे हैरान होते.
लेकिन नितिन तो वायोलिन का शैदाई है. यह सदानंद की राय नहीं थी, कल के अखबार की सुर्खी ऐसा कह रही थी. नितिन के फैंस की प्रतिक्रिया थी-
”क्या ग़ज़ब की वायोलिन बजाता है यह लड़का! इसके पर्यवेक्षण का जवाब नहीं. कोयल की कूं-कूं हो या गाय का रंभाना, घोड़े की हिनहिनाहट हो या ट्रैफिक जैम पर गाड़ियों के भोंपुओं की भुनभुनाहट, कुत्ते की भों-भों हो या मोटर की पों-पों या फिर ऐम्बुलैंस का सायरन, हर आवाज को बड़े ध्यानपूर्वक कैच करके वायोलिन पर तल्लीनता से हू-ब-हू निकालना अद्भुत हुनर है. इस हुनर को कोटिशः सलाम.”
”अगर मैं नितिन से अपनी मर्जी की स्ट्रीम लेने को कहूंगा, तो वो लड़का एक बार भी नाक-भौं नहीं सिकोड़ेगा, लेकिन फिर उसके इस हुनर का क्या होगा?” नितिन के पापा की दुविधा बढ़ती ही जा रही थी.
”SIMONE DE BEAUVOIR किताबों से ही घिरे रहते, तो सिम्फनी के प्रणेता कैसे बन पाते?” क्या नितिन आधुनिक सिम्फनी का प्रणेता बनते-बनते रह जाएगा?” उनकी विचारधारा खुद से ही सवाल करती और फिर अधूरे जवाब छोड़कर भटक जाती.
नितिन बिना किसी तनाव के अपनी मस्ती में कभी वायोलिन छेड़ता, कभी पढ़ाई में रम जाता. सदानंद का आनंद उनसे रूठा हुआ था.
”मैं भी अजीब पागल हूं. जिसके लिए मैं अपना अमन-चैन बर्बाद कर रहा हूं, वह मौज में सब कुछ कर रहा है. फिर मैं इतना सोच ही क्यों रहा हूं? उसकी Meditation उसे वायोलिन में भी जितनी सहायता कर रही है, उतनी ही पढ़ाई में भी. उसके लिए दोनों रस्ते खुले हैं. समय आने पर जिसे वरीयता देनी होगी, दे देगा. मुझसे सलाह ली, तो कहूंगा- ‘बेटा जिंदगी तेरी है, जो करना हो अपनी मर्जी से करो.’ वह भी खुश रहेगा, मैं भी खुश.” उनका निर्णय था.
सदानंद ने भी आज में जीने का हुनर सीख लिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “हुनर

  • लीला तिवानी

    बच्चों को समझाने से पहले अभिभावकों को खुद को समझाना होगा, उनको साधने से पहले खुद को साधना पड़ेगा. बच्चों पर रास्ता चुनने के लिए बहुआयामी तनाव होता है, उनके तनाव को समाप्त करने से पहले खुद को तनाव रहित करना होगा. भविष्य को ध्यान में रखते हुए सबको आज में जीने का हुनर सीखना होगा.

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